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________________ ६० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श मगध की अधीनता स्वीकार कर ली । अन्ततोगत्वा प्रथम शुंग शासक पुष्यमित्र के शासन काल में मल्लराष्ट्र, मगध साम्राज्य में पूर्णतया विलीन हो गया, इस प्रकार इसका अस्तित्व सदा के लिए समाप्त हो गया । बुद्ध के महापरिनिर्वाणोपरान्त तत्कालीन निकटवर्ती राष्ट्रों के इतिहास का अवलोकन मल्लराष्ट्र के ऐतिहासिक अध्ययन हेतु आवश्यक है । बुद्ध के जीवन काल में ही अपनी विस्तारवादी साम्राज्य नीति के कारण नागवंशीय वैदेहीपुत्र सम्राट् अजातशत्रु की दृष्टि वज्जि संघ पर लगी हुई थी । उनके महापरिनिर्वाण के पश्चात् ही महत्वाकांक्षी अजातशत्रु ने गणसंघ के मुख्य सदस्य लिच्छवि गणसंघ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया । फिर भी मल्लराष्ट्र इसके अधिकारं से परे रहा। अजातशत्रु के पश्चात् उसके वंशज राजा शिशुनाग ने कोसल तथा उनके निकटवर्ती राज्यों पर विजय प्राप्त कर मगध साम्राज्य का और विस्तार किया था । किन्तु राजनैतिक सूझ-बूझ के कारण मल्लराष्ट्र इससे प्रभावित नहीं हुआ । तत्पश्चात् राजा महापद्म ने भी भारत की दिग्विजय करते समय कुछ अन्य राजाओं को समूल नष्ट कर दिया तथा कुछ को अपने अधीनस्थ कर छोड़ दिया, जिसका वर्णन 'कलियुगराज वृत्तान्त" से प्राप्त होता है कलि के प्रभाव से महानन्दी ( शैशुनाग वंश का अन्तिम राजा ) द्वारा शूद्रा रानी से महापद्म (जिसको घननन्द भी कहते थे) नामक प्रसिद्ध राजा उत्पन्न हुआ । वह अत्यन्त लोभी, अत्यन्त बलवान और सब क्षत्रियों का नाश करने वाला था । दूसरे परशुराम के समान वह इक्ष्वाकुवंशी, पान्चाल, कुरुवंशी, हैहय ( चन्द्रवंश की एक शाखा ), कालक एक लिंग, शूरसेन, मैथिल तथा दूसरे राजाओं को जीतकर एकराट (सम्राट्) तथा १. महानन्देश्च शूद्रायां महिष्यां कालिचोदितः । उत्यत्स्यते महापद्मो धननन्द इति श्रुतः ॥ अति लुब्धोऽतिबलो सर्वक्षत्रान्तको नृपः । ऐक्ष्वाकांश्च पाञ्चालान् कौरव्यांश्च ह्यान ॥ कालकानेक लिंगांश्च शूर सेनांश्च मैथिलान् । जित्वा चान्यांश्च भूपालान् द्वितीय इव भार्गवः ॥ एकराट् स महापद्मः एकच्छत्रो भविष्यति । सकृत्स्नामेव पृथ्वीमनुल्लंघित शासनः शसिष्यति महापद्मो मध्ये विन्ध्य हिमालयोः । Jain Education International कलियुग राजवृत्तान्त (तृतीय भाग) अध्याय - २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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