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________________ मल्ल राष्ट्र : ५९ : बार आता है । महावीर ने वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन मज्झिमपावा में पधार कर महासेन वन में तीर्थ प्रवर्त्तन कर सामायिक प्रकाश किया था, जहाँ पर सोमिल ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। महावीर ने उसी स्थली पर पहली देशना दी थी, तथा उनका द्वितीय समवशरण भी वहीं पर हुआ था । यहीं, यज्ञ में आये हुए इन्द्रभूति गौतम आदि ग्यारह ब्राह्मणों को उन्होंने गणधर के रूप में दीक्षित किया था, इसीलिए वे धम्मवर चक्कवट्टी कहलाये । उक्त ग्रन्थ ' से ज्ञात होता है कि मल्ल देश के थूणांक सन्निवेश क बाहर पहुँचकर निगंठ ज्ञातपुत्त ध्यानलीन हो गये तथा पाँचवाँ वर्षाकाल समाप्त होने पर उन्होंने मल्लदेश की ओर प्रस्थान किया और थूणिय सन्निवेश (अनूपिया) पहुँचे । कल्पसूत्र के १२१, १२२ सूत्र से ज्ञात होता है कि ४२व चातुर्मास पावापुरी के राजा हस्तिपाल की पुरानी रज्जुकशाला में व्यतीत किया । वहाँ पर उन्होंने १६ हजार पहर तक निरंतर उपदेश दिया था, तत्पश्चात्. चातुर्मास के ७ वें पक्ष में श्रमण महावीर कालधर्मं को प्राप्त हुए थे । उपर्युक्त वर्णन से इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है कि महावीर एवं बुद्ध का मल्लराष्ट्र में निरंतर आवागमन हुआ करता था । मल्लराष्ट्र में बौद्ध एवं जैन धर्मावलम्बियों की संख्या अधिक थी । अपने धर्म प्रचार हेतु दोनों इस क्षेत्र पर अपने को केन्द्रित किये हुए थे । इसका स्पष्ट कारण यही प्रतीत होता है कि दोनों को इस क्षेत्र से विशेष लगाव था, तथा आवागमन के साधन की सुगमता थी । इस सम्भावना से भी नकारा नहीं जा सकता है कि इसके मूल में उनकी पारस्परिक प्रतिद्वन्दिता एवं प्रतिस्पर्धा की भावना विद्यमान थी । मल्लराष्ट्र का पतन जब तक मल्लराष्ट्र साधन-सम्पन्न रहा, सैनिक दृष्टि से शक्तिशाली रहा, शासक कुशल रणनीतिज्ञ रहे, उसकी शासन व्यवस्था सुदृढ़ रही, समाज सुसंगठित रहा, तब तक मगध सम्राट् मल्लराष्ट्र पर आँखें उठाने का साहस नहीं कर पाये । किन्तु निकटवर्ती गणतन्त्रीय राष्ट्रों के पतन तथा इसकी अन्य निर्बलताओं के कारण मल्लराष्ट्र की शक्ति शनैः शनैः क्षीण होने लगो । नन्दवंशीय महापद्म के शासन काल में मल्लराष्ट्र ने.. १. आ० चू० प्रथम भाग, पृ० २८०, २८२, २९२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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