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मल्लराष्ट्र : ५५ विवरण प्राप्त होता है जबकि बुद्ध के विषय में जैन साहित्य एवं जैन शास्त्रों में बौद्ध धर्म के प्रवर्तक के रूप में बुद्ध का कहीं नामोल्लेख तक नहीं मिलता है। जैन साहित्य में समकालीन महापुरुषों, महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन गौण रहा हैं । इसमें उपदेशों एवं सिद्धान्तों की ही प्रधानता रही है । जबकि बौद्ध साहित्य में उपदेश एवं सिद्धान्तों के साथ-साथ विभिन्न समसामयिक महापुरुषों एवं घटनाओं की भी व्यवस्थित चर्चा की गई है ।
महावीर - बुद्ध देशना
प्राचीनकाल से ही देशना (उपदेश) धर्म-प्रचार का प्रमुख साधन रहा है। महावीर एवं बुद्ध भी धर्म प्रचार हेतु विभिन्न स्थलों की यात्रा करते थे और उपदेश देते थे । साहित्यिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि मल्लराष्ट्र दोनों युग-पुरुषों की देशना का प्रमुख केन्द्र रहा है और यहाँ जैन एवं बोद्ध धर्मावलम्बियों की संख्या अधिक थी ।
मल्लराष्ट्र और बुद्ध के सम्बन्ध के विषय में साहित्य से ज्ञात होता है कि महापरिनिर्वाण पूर्व बुद्ध ने कई बार कुशीनारा की यात्रायें की थीं। महावग्ग' से ज्ञात होता है कि एक बार आपण में विहार करने के पश्चात् साढ़े बारह सौ भिक्षुओं के संघ के साथ बुद्ध ने कुशीनारा के लिए प्रस्थान किया । उनके आगमन का समाचार प्राप्त कर मल्लों ने निश्चय किया font बुद्ध स्वागत के लिए नहीं जायेंगे उनको पाँच सौ कार्षापण का दण्ड दिया जायेगा । बुद्ध का स्वागत करने वालों में बुद्ध के अनन्य शिष्य आनन्द का अभिन्न मित्र राजमल्ल भी अनिच्छापूर्वक सम्मिलित था । राजमल्ल के हृदय में बुद्ध एवं बौद्ध धर्म के प्रति किसी प्रकार की आस्था नहीं थी । इसी समय वह बुद्ध से प्रभावित होकर उनका उपासक बना तथा बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया । उसने विशेषतः शाकभाजी से बुद्ध का सत्कार किया ।
कुशीनारा के दक्षिण-पश्चिम में हिरण्यवती नदी के तट पर मल्लों का उपवतन नामक शालवन था । महापरिनिर्वाण पूर्व बुद्ध का आगमन इस शालवन में हुआ था, जहाँ पर सुभद्र नामक ब्राह्मण परिव्राजक ने उनके दर्शन से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी । इस शालवन
१. विनयपिटक (हि०) महावग्ग ६, पृ० २५२-२५३. म० पं० सांस्कृत्यायन, राहुल, महाबोधिसभा, सारनाथ, वाराणसी १९३५ ।
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