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४२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
३-जब तक वे, उचित प्रक्रिया के बिना कोई कानून लागू नहीं करते। विधिपूर्वक निर्मित कानून का उल्लंघन कर कोई कार्य नहीं करते और ये वज्जिय विधि-सम्मत ढंग से स्थापित प्राचीन संस्थाओं के
अनुकूल आचरण करते हैं। ४-जब तक वे अपने वृद्धों और गुरुओं का सम्मान करते, आदर-सत्कार
करते, उन्हें मानते-पूजते और उनकी सुनने योग्य बातों को सुनते,. __ मानते और तदनुकूल आचरण करते हैं। ५-जब तक वे अपनी कुलवधुओं और कुल कुमारियों को बलात् नहीं
रोकते या उन पर अत्याचार नहीं करते। ६-जब तक वे, वज्जि-चैत्यों (जातीय मंदिरों और स्मारकों ) का
आदर-सत्कार और मान करते तथा उनको पूर्व प्रदत्त धर्मानुकूल बलि ( चढ़ावा, पूजा आदि जो उन मंदिरों और स्मारकों को बनाये रखने, उनकी मरम्मत आदि में खर्च होता था) का अपहरण नहीं
करते, उसे नहीं छड़ाते। ७-जब तक वे अपने आश्रितों की शरण, रक्षा और पोषण का उचित
प्रबन्ध करते-तब तक “वज्जियों की, वृद्धि ही समझनी चाहिए, हानि नहीं।" हानि । किन्ति ते, आनन्द, सुतं-'वज्जी यानि तानि वज्जीनं वज्जिचेतियानि अब्भन्तरानि चेव बाहिरानि च, तानि सक्करोन्ति गरुं करोन्ति मानेन्तिः पूजेन्ति, तेसं च दिन्नपुब्बं कतपुब्बं धम्मिकं बलिं नो परिहापेन्ती' " ति ? "सुतं मेतं, भन्ते-'वज्जी यानि तानि वज्जीनं वज्जिचेतियानि अन्भन्तरानि चेव बाहिरानि च, तानि सक्करोन्ति गरुं करोन्ति मानेन्ति पूजेन्ति, तेसंच. दिन्नपुब्बं कतपुब्बं धम्मिकं बलिं नो परिहापेन्ती'" ति । "यावकीवं च, आनन्द, वज्जी यानि तानि वज्जीनं वज्जिचेतियानि अब्भन्तरानि चेव बाहिरानि च, तानि सक्करिस्सन्ति गरुं करिस्सन्ति मानेस्सन्ति पूजेस्सन्ति, तेसं च दिन्नपुब्बं कतपुब्बं धम्मिकं बलिं नो परिहापेस्सन्ति, वुद्धियेव, आनन्द, वज्जीनं पाटिकङ्खा, नो परिहानि । किन्ति ते, आनन्द, सुतं-'वज्जीनं अरहन्तेसु धम्मिका रक्खावरणगुत्ति सुसंविहिता, किन्ति अनागता च अरहन्तो विजितं आगच्छेय्युं, आगता च अरहन्तो विजिते फासु. विहरेय्यु'" ति? "सुतं मेतं, भन्ते–'वज्जीनं अरहन्तेसु धम्मिका रक्खावरणगुत्ति सुसंविहिता,. किन्ति अनागता च अरहन्तो विजितं आगच्छेय्यु, आगता च अरहन्तो विजिते फासु विहरेय्यु' " ति।
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