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१० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श जैन साहित्य में पावा __ जैन साहित्य में उपलब्ध पावा सम्बन्धी विवेचन के क्रम में हम सर्वप्रथम इसकी भौगोलिक स्थिति पर विचार करेंगे । जैनसाहित्य में भौगोलिक विवरण प्रायः उपेक्षित ही रहा है । डा० मोतीचन्द्र' का अभिमत है कि जैनसाहित्य ज्ञान का भण्डार होते हुए भी सामान्यतः तत्कालीन भौगोलिक तथ्यों पर प्रकाश डालने में असमर्थ है । इसका कारण जैसा कि बृहत्कल्पभाष्य में उल्लिखित है अधिकतर जैनभिक्षुओं की यात्रा जैनतीर्थंकरों के जन्म, निष्क्रमण, कैवल्य और निर्वाणस्थलों तक सीमित थी। जैन ग्रन्थकार सामान्य भौगोलिक विवरण प्रस्तुत करने के प्रति सचेष्ट नहीं रहे हैं।
जहाँ तक जैनसाहित्य में पावा की स्थिति का प्रश्न है, सभी ग्रंथ इसे मध्यदेश में स्थित बताते हैं परन्तु समय-समय पर इस देश की सीमाओं के घटने-बढ़ने से विभिन्न ग्रन्थों में अलग-अलग सीमायें दी गई हैं। बृहत्कल्प भाष्य में इसकी सीमायें, पूर्व में मगध तथा अंग, पश्चिम में कुरुक्षेत्र, उत्तर में कुणाल और दक्षिण में कौशाम्बी तक बतायी गई है। जबकि पुन्नाटसंघीय जिनसेन कृत 'हरिवंश पुराण' ३ (सन् ७८३ ) के अनुसार इसके उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गंगा व मगध, पूर्व में अंगदेश तथा पश्चिम में काशी व कोशल देश बताया गया है।
ज्ञानचन्द्र जैन के अनुसार पश्चिम में कुरु जनपद से लेकर पूर्व में अंगजनपद तक, उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में गोदावरी के तट पर स्थित अश्मक जनपद तक फैले हुए प्रदेश को आर्यक्षेत्र अथवा मज्मियदेश या मध्यदेश कहा गया है। डॉ० योगेन्द्र मिश्र के अनुसार मध्यदेश की सीमा उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्याचल तक,
१. डॉ० मोतीचन्द्र, सार्थवाह पृ० १ २. कद्दई निग्गन्थाणं वा निग्गन्थीण वा पुरालीमेणं जाव अङ्गामगहाओ एत्तए,
दक्षिणेण जाव-कोसम्बीओ एत्तए, पच्चालीमेण जाव विसायाओ एत्तए,
उत्तरेण जाव कुणालाविस याओ एत्तए-बृहत्त्कल्प भाष्य, पृ० १२२९ ३. हरिवंशपुराण-सर्ग २ का अन्त और सर्ग ३ का आदि । ४. जैन ज्ञानचन्द्र-निग्गंठ ज्ञातपुत्र, पृ० २४ ५. डॉ. मिश्र, योगेन्द्र कुमार-श्रमण भगवान् महावीर की वास्तविक निर्वाण
भूमि पावा, पृ० २२
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