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साहित्यिक साक्ष्य : ११" पूर्व में प्रयाग से राजमहल तक घटती-बढ़तो रही थी तथा पश्चिम में इसकी सीमा विनशन तक फैली हुई थी । वस्तुतः मध्यदेश की सीमा में हिमालय तथा विन्ध्याचल के मध्य का भाग और पश्चिम में विनशन तथा पूर्व में प्रयाग का भाग अति प्राचीन काल से, सम्मिलित माना जाता रहा है । मनुस्मृति में भो मध्यदेश को इसी सोमा का उल्लेख है और यह परिकल्पना उचित प्रतीत होती है ।
जैनसहित्य के आलोक में मध्यदेश की सीमा निश्चित हो जाने के पश्चात् पावा के 'मध्यमा' नामकरण पर विचार करने से इसकी तीन सम्भावनायें प्रतीत होती हैं :
(१) सम्भवतः महावोर के निर्वाण-काल में पावा एक विशाल नगर था और इसके शासक हस्तिपाल की रज्जुशाला, जहाँ महावीर का निर्वाण हुआ था, नगर के मध्य में स्थित होने के कारण ही इसे मज्झिमा
पावा कहा गया ।
(२) मध्यदेश की उक्त सीमाओं के सन्दर्भ में गंगा के उत्तर में नेपाल तथा चम्पारण के समीप देवरिया जनपद में स्थित इस पावा को मध्यमा पावा कहना उचित है ।
(३) यह भी सम्भावना हो सकती है कि भारतवर्ष में प्रसिद्ध तीन पावा नामक स्थलों में महावीर को निर्वाण भूमि पावा की स्थिति अन्य दोनों स्थलों के मध्य होने के कारण इसे मध्यमा पावा कहा गया हो । पावा नामक तीनों स्थलों का विवरण इस प्रकार है
(अ) कुशीनगर, देवरिया (उत्तर प्रदेश) के निकट स्थित मल्लक्षत्रियों की राजधानी पावा । बौद्ध ग्रन्थों में भी इसका विस्तार से वर्णन मिलता है ।
(ब) राजगृह, नालन्दा, बिहार के पास की पावा - इतिहास में कहीं भी इसके राजधानी होने का उल्लेख नहीं है ।
(स) मिर्जापुर के पास की पावा -: - भग्गो या भार्गव क्षत्रियों की राजधानी ।
परन्तु बलभद्र जैन ' ने मिर्जापुर की इस पावा के स्थान पर तीसरी पावा हजारीबाग और मानभूमि प्रदेश में स्थित माना है जो इसकी राजधानी थी । पर यह तर्कसंगत नहीं लगता । जैसा कि डॉ० मिश्र ने
१. जैन, बलभद्र पावापुरी, पृ० १७३
२. डा० मिश्र योगेन्द्र कुमार - श्रमणमहावीर की वास्तविक निर्वाणभूमि पावा पृ० २६
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