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________________ विषय-प्रवेश : ३ एक हो थी? सम्भवतः इस प्रश्न के उत्तर में पावा-अनुसन्धान का महत्त्वपूर्ण सूत्र अन्तर्निहित है । परन्तु इस प्रश्न की चर्चा बाद में, अभी हम पावा के महत्त्व पर ही विचार करेंगे। जैनों के सम्प्रदाय-भेद की दृष्टि से भी इस नगरी का महत्त्व है । 'दीघनिकाय' के पसादिक सुत्त' एवं सामगामसुत्तों के अनुसार सर्वप्रथम पावा में ही जैनियों के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर निकायों की सृष्टि हुई जिसकी सूचना बुद्ध को पहले ही प्राप्त हो चुकी थी। दीघनिकाय के अनुसार अपने जीवनकाल में ही बुद्ध द्वारा अपने अनुयायियों के लिए पावा को तीर्थस्थल घोषित कर दिया गया था । बुद्ध ने कहा था, जहां तथागत ने परिनिर्वाण पूर्व अन्तिम भिक्षा ग्रहण की उसका उतना ही महत्त्व है जितना उस स्थल का जहाँ प्रथम पिण्डपात ग्रहण कर तथागत अनुपम सम्यक् सम्बोधि को प्राप्त हुए। पावा की महत्ता कुशीनगर की अपेक्षा अधिक थी। बुद्ध के प्रमुख शिष्य आनन्द ने 'महापरिनिव्वाणसुत्त' में कुशीनगर को एक क्षुद्र और जंगली नगला (कूड नगरकं उज्जगल नगरकं) माव कहा था। प्रो० राधाकुमद मुखर्जी" भी सहमत हैं कि पावा की प्रधानता थी और कुशीनगर उसकी थोड़ी बहुत अधीनता में था।' 'महापरिनिव्वाण सुत्त' में बुद्ध के परिनिर्वाण के अवसर पर कुशीनगर में मल्लों द्वारा आयोजित उत्सव के विवरण से उनके वैभव, कला, संगीत इत्यादि का जो परिचय मिलता है उस आधार पर सहज ही कल्पना की जा सकती है कि पावा के मल्ल कितने वैभवशाली रहे होंगे। पावा की आर्थिक सम्पन्नता एवं वैभव के कारण यहाँ से अन्य स्थानों को आवागमन हुआ करता था। नलिनाक्षदत्त एवं प्रो० कृष्णदत्त बाजपेयी ने पूर्व बुद्धकालीन उत्तर भारत के बहुमुखी विकास का वर्णन १. दीघनिकाय (हिन्दी अन्वाद ) पसादिक सुत्त ३/६ पृ० २५२-२५९ , सामगामसुत्त ३/९/४ पृ० ४४९ , पृ० १४० , महापरिनिव्वाणसुत्त २/३ पृ० १४३ . ५. डॉ० मुखर्जी राधाकुमद-हिन्दू सिविलाइजेशन पृ० १९९ ६. दीघनिकाय (हिन्दी अनुवाद) महापरिनिव्वाण सुत्त २/४ पृ० १५२ ७. नलिनाक्षदत्त एवं कृष्णदत्त वाजपेयी-डेवलपमेण्ट आव बुद्धिज्म इन उत्तर प्रदेश पृ० २०, २९ مه له س » Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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