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________________ २ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श रूप में प्रसिद्ध हुई । अभिधान राजेन्द्र' में प्राचीन जैन ग्रन्थों के उद्धरण के आधार पर 'पावा' को 'पापा' कहा गया है-पावा पापा, मध्यमाऽपर नाम्या । संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर में भी पावा को पापा माना गया है तथा संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी में पावापुरी को अपापापुरी माना गया है । प्रसिद्ध अंग्रेज पुरातत्त्ववेत्ता ए० कनिंघम के मत में पावन, पखन, पद्रमन एवं पदखन, पावा का ही रूपान्तर है जिसका संशोधित रूप पड है । तिब्बती कन्जुर 'कोहग्यूर' में इसे दिग्पचन नाम से सम्बोधित किया गया है । तिब्बती में 'दिग्' शब्द का अर्थ है - पवित्र, पूज्य । पचन शब्द का अर्थ है - नगर, निवासस्थान या बस्ती । इस प्रकार तिब्बती दिग्पचन, संस्कृत के पावनपुर, पावन नगर या पावन आलय का समानार्थी है । ऐसी स्थिति में कनिंघम का अभिमत है कि पावा मूलतः भारतीय नामकरण है या तिब्बती शब्द का अनुवाद, यह कहना कठिन है । ए० सी० कार्लाइल" ने पावा की उत्पत्ति संस्कृत शब्द पावन से मानी है । पावन शब्द से पवित्र, शुचि, विमल, निर्मल आदि भावों का बोध होता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्राचीन काल से लेकर अब तक पावा शब्द निर्विवाद रूप से पवित्रता के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । महता पावा का इतिहास अतिप्राचीन है । निःसन्देह महावीर और बुद्ध के पूर्व ही यह नगरी स्थापित हो चुकी थी । प्राचीनकाल में इस नगरी के आर्थिक रूप से सुदृढ़ एवं वैभव-सम्पन्न होने एवं राजमार्गों द्वारा भारतवर्ष के प्रमुख नगरों से जुड़े होने के साक्ष्य मिलते हैं । पावा जैन एवं बौद्ध दोनों धर्मावलम्बियों के लिए पूज्य थी । जैनों के लिए महावीर की निर्वाणभूमि होने के कारण तो बौद्धानुयायियों के लिए कुशीनगर में महाप्रयाण से पूर्व बुद्ध की अन्तिम विहार-स्थली होने के कारण । यहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या महावीर और बुद्ध से सम्बद्ध पावा १. अभिधान राजेन्द्र - सं० राजेन्द्रसूरि, पञ्चम खण्ड, - पृ० २. संक्षिप्त हिन्दी शब्द सागर - पृ० २८ ३. संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी - सं० मोनय रविलियम्स, ८८४ Jain Education International पृ० ६२८ ४. एं०, ज्या० इं०, पृ० ३६६-६७ आ० स० इ० रि० टू० गो० सा० गा० खण्ड २२, पृ० ३४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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