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२०४ : महावीर नर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श करते हुए मूल आकार को प्रभावित किया था जिसका क्रमशः डॉ. राजबलीपाण्डेय (पू० पृ० ७० ) एवं डी० आर० पाटिल ने वर्णन किया है। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर पड़रौना ही पावा सिद्ध होता है।
( ए० रि० वि०, पृ० ३१-३२)
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