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२०० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
राजाओं की निर्वाण के समय उपस्थिति और अजातशत्रु कुणिक की अनुपस्थिति यह सिद्ध करती है कि महावीर का निर्वाण मगध स्थित पावा में न होकर मल्ल राष्ट्र के अन्तर्गत स्थित पावा में ही हुआ होगा । क्योंकि राजगृह के समीप स्थित पावा में यह घटना हुई होती तो यह सम्भव नहीं था कि महावीर का परमभक्त अजातशत्रु कुणिक वहाँ उपस्थित नहीं होता ।
पुनः मगध के विशाल साम्राज्य की राजधानी राजगृह के उपान्त पर स्थित वर्तमान में मान्य पावा पर किसी स्वतन्त्र हस्तिपाल नामक राजा का आधिपत्य होना और उसे अपनी राजधानी बनाना सम्भव प्रतीत नहीं होता है । वर्तमान राजगृह के अतिनिकट स्थित पावा उस समय मगध के सम्राट के अधिकार के अतिरिक्त किसी अन्य राजा के अधिकार में रही हो ऐसा मानना सम्भव नहीं लगता । पुनः यदि राजगृह की निकटवर्ती, वर्तमान में निर्वाण स्थल के रूप में मान्य पावापुरी ही महावीर को निर्वाणस्थली होती हो चाहे स्वयं अजातशत्रु चम्पा में होने के कारण उपस्थित नहीं हुआ होता तो कम से कम उसका प्रतिनिधि तो राजगृह से अवश्य ही आता । ज्ञातव्य है कि श्रेणिक के के पश्चात् अजातशत्रु कुणिक ने अपनी राजधानी राजगृह से चम्पा स्थानान्तरित कर दिया था । इसका तात्पर्य यह है कि महावीर का निर्वाण स्थल पावा राजगृह के निकट न होकर अन्यत्र स्थित पावा होगी ।
महावीर के निर्वाण स्थल के रूप में जिस पावा की प्रसिद्धि है उसे कल्पसूत्र में मज्झिमा पावा कहा गया है इससे एक सम्भावना यह भी हो सकती है कि उस युग में पावा नाम से प्रसिद्ध कई नगर रहे होंगे और उन्हें अलग- अलग पहचानने के लिए ही मज्झिमा पावा ( मध्यवती पावा ) जैसे विशेषण प्रयोग किये जाते होंगे ।
कुछ विद्वान् यह मानते हैं कि महावीर का प्रभाव क्षेत्र और विहार क्षेत्र मुख्य रूप से गंगा के एवं गण्डक के पश्चिम-दक्षिण में स्थित क्षेत्र ही था अतः उनका निर्वाण इसी क्षेत्र में हुआ होगा । किन्तु यदि हम उनके चातुर्मासों की सूची पर विचार करें तो जहाँ उनके १४ चातुर्मास राजगृह के उपान्त नालन्दा में हुए वहीं उनके २५ चातुर्मास वैशाली, वाणिज्य ग्राम और मिथिला में भी हुए हैं । अतः इससे यह फलित होता है कि वे गंगा के उत्तर-पूर्व तथा गंगा के दक्षिण-पश्चिम दोनों ही क्षेत्रों में समान रूप से विहार करते थे । यदि राजगृह के उपान्त और नालन्दा
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