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________________ उपसंहार : १९९ स्थित वासुकुण्ड ग्राम को महावीर के जन्म स्थान के रूप में स्वीकृत करने की प्रवृत्ति का विकास हुआ है । यद्यपि परम्परागत रूप से जैनधर्मानुयायो आज भी नालन्दा के समीप स्थित कुण्डग्राम अथवा मुंगेर जिले में स्थित लछुआड़ को ही महावीर का जन्मस्थान मान रहे हैं । लछुआड़ को महावीर का जन्मस्थान सिद्ध करने के लिए प्रमाण भी जुटाये जा रहे हैं पर वे अभी विवादास्पद ही हैं । यही समस्या महावीर के निर्वाण स्थल को लेकर भी है । यद्यपि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्परायें राजगृह के निकट उससे लगभग १० मील दूर स्थित पावा को उनका निर्वाणस्थल मान रही हैं किन्तु पुरातत्त्ववेत्ताओं और विद्वानों को, इस स्थल को महावीर का निर्वाणस्थल मानने में कई कठिनाइयाँ प्रतीत होती हैं। वर्तमान पावा राजगृह के इतना निकट है कि वहाँ हस्तिपाल राजा के किसी स्वतन्त्र राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । फिर महावीर का निर्वाणस्थल पावा प्राचीन जैनागमों में मल्लराष्ट्र का अंग माना गया है । उसके समीप मल्लों और लिच्छवियों के १८ गणराज्य स्थित थे जबकि वर्तमान पावा के सन्दर्भ में ऐसे कोई भी संकेत उपलब्ध नहीं होते । इससे लगता है कि मल्लराष्ट्र में स्थित महावीर की निर्वाणस्थली पावा कालक्रम में लुप्त हो गई और जैनधर्म के अनुयायियों को उस स्थल की स्पष्ट पहचान नहीं रह सकी । कालान्तर में नवीन पावा की कल्पना कर वहाँ निर्माण कार्य कर दिये गये । अतः महावीर के निर्वाणस्थल पावा को लेकर भ्रान्ति उत्पन्न हो गयी । प्रस्तुत ग्रन्थ में हमने उसी भ्रान्ति को दूर करने का प्रयास किया है और यह बताने का प्रयास किया है कि भगवान् महावीर को निर्वाणस्थली का यथार्थ अस्तित्व कहाँ रहा है । इस सम्बन्ध में जो भी ऐतिहासिक, पुरातात्त्विक एवं साहित्यिक साक्ष्य उपलब्ध हो सके हैं उनको संकलित कर यह बताने का प्रयास किया गया है कि वास्तविक पावा वर्तमान पडरौना ही है । प्राचीन जैनागम साहित्य में आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में और कल्पसूत्र में ही महावीर के निर्वाण काल और निर्वाणस्थल के सबन्ध में हमें सूचनायें मिलती हैं । कल्पसूत्र के अनुसार जनपदों में विहार करते हुए महावीर ने अपना अन्तिम चातुर्मास मज्झिमा पावा के राजा हस्तिपाल की पुरानी रज्जुकशाला में बिताया था। वहीं चातुर्मास के सातवें पक्ष के अन्त में कार्तिक कृष्णपक्ष की अमावस्या को महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए थे । उस समय काशी, कोशल देश के नौ मल्ल और नौ लिच्छवी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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