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________________ पावा मार्ग अनुसंधान : १९५ विहार करते थे, यात्रा नहीं। इसलिए यदि अन्य प्रमाणों के आधार पर किसी स्थान की स्थिति निश्चित होती दिखाई पड़े तो केवल दिशा का ध्यान रखकर हमें उसे निषिद्ध नहीं कर देना चाहिये। अतः पड़रौना ( पावा ) से वे कसया ( कुशीनगर ) आ सकते थे और इस आधार पर हमें इस स्थान की पहचान के सम्बन्ध में आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि अशोक स्तभों के आधार पर मार्ग के निर्धारण के प्रश्न पर उपाध्याय सम्यक विचार नहीं कर पाये थे। नहीं तो उन्हें तर्क देने की आवश्यकता नहीं हुई होती। युग-पुरुष बुद्ध भी एक मानव की भाँति मार्गों द्वारा विचरण किया करते थे, इसमें रंच मात्र भी सन्देह नहीं है। ____बौद्ध साहित्य एवं अशोक स्तम्भों के अध्ययन से यह प्रमाणित हो जाता है कि बुद्ध काल में वैशालो-श्रावस्ती राजमार्ग, प्रमुख मार्गों में से एक था। यह निर्विवाद सत्य है कि वैशाली से फाजिलनगर सठियांव होकर कुशीनगर का कोई प्रमुख प्राचीन मार्ग नहीं रहा है। अशोक स्तम्भों के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि होती है कि भगवान् बुद्ध महापरिनिर्वाण पूर्व की यात्रा में वैशाली से कोल्हुआ, केसरिया, लौरिया अरेराज, लौरिया नन्दनगढ़, रतवल घाट से गंडक पार कर पावा ( पड़रौना ) होते हुए , क्शीनगर पहुंचे थे। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन मार्ग पर स्थित पावा एक प्रसिद्ध नगर रहा है । ___ नगरों एवं मार्गों के इतिहास का एक दूसरे से अटूट सम्बन्ध है। बुद्ध काल में ही नहीं अपिपु रामायण एवं महाभारत काल में भी, श्रावस्ती-वैशाली महत्त्वपूर्ण मार्ग रहा है जिसके अन्दर पड़रौना क्षेत्र रहा है। यह बुद्धकाल में स्पष्टतया पावा के रूप में उभर कर सामने आया है, जहाँ तीर्थंकर महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था तथा जहाँ महात्मा बुद्ध ने महानिर्वाण पूर्व अन्तिम भोजन ग्रहण किया था, वही पावा आधुनिक काल में पड़रौना के रूप में विख्यात है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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