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________________ उपसंहार सभी धर्मों में 'तीर्थ' का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। जहाँ किन्हीं धर्मों में कुछ स्थलों को स्वतः ही पवित्र मान लिया जाता है और उन तीर्थों की यात्राओं एवं वहाँ स्नानादि को एक धार्मिक कृत्य के रूप में सम्पन्न किया जाता है जैसे गंगा। दूसरे कुछ धर्म ऐसे हैं जो किसी स्थल विशेष को स्वतः पवित्र तो नहीं मानते किन्तु अपने धर्म प्रवर्तकों एवं धर्म आचार्यों के जन्म, साधना, देह-विलय आदि से सम्बन्धित विशिष्ट स्थलों को पूजनीय एवं पवित्र मानते हैं एवं उनकी यात्रा करना एक धार्मिक कृत्य समझा जाता है। जैन और बौद्ध धर्मों में हिन्दू धर्म की भाँति किन्हीं विशेष स्थलों को स्वतः पवित्र मानकर तीर्थ के रूप में स्वीकार तो नहीं किया गया किन्तु इन धर्मों में बुद्ध और महावीर के जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण स्थलों को तीर्थ के रूप से अवश्य ही मान्य कर लिया गया। जैन परम्परा में सामान्यतया तीर्थकरों के गर्भ, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण भूमियों को पवित्र माना गया और इन्हें कल्याणक भूमि के रूप में तीर्थ की संज्ञा प्रदान की गयी। जैन परम्परा में तीर्थंकरों की इन कल्याणक भूमियों के प्रति वही आस्था और श्रद्धा देखी जाती हैं जो अन्य धर्मों में अपने-अपने तीर्थस्थलों के प्रति देखी जाती है। जैनधर्म के तीर्थंकरों में पार्श्व और महावीर ऐतिहासिक व्यक्तियों के रूप में स्वीकृत किये गये हैं और जैन परम्परा से अन्तिम दो तीर्थंकरों के रूप में निकटस्थ रूप से जुड़े होने के कारण उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं से सम्बन्धित स्थल भी जैन परम्परा में परम पवित्र तीर्थ माने गये। जैनधर्म के अनुयायी प्राचीन काल से ही इन्हें तीर्थभूमि मानकर इनकी यात्रा भी करते रहे। यद्यपि बुद्ध और महावीर दोनों ही समसामयिक रहे हैं। किन्तु जहाँ बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित पवित्र स्थल आज भी सुज्ञात और सुनिश्चित है वहाँ महावीर के जीवन से सम्बन्धित उन पवित्र स्थलों की सम्यक पहचान कर पाना आज कठिन कार्य हो गया है। भगवान् बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित निम्न ४ स्थल बौद्ध धर्म में परम पवित्र माने जाते हैं यथा १. लुम्बिनी-बुद्ध की जन्मस्थली। २. बोधगया-बुद्ध को बुद्धत्व-प्राप्ति का स्थल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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