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________________ १९४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श ओर ध्यान नहीं दे पाये हैं जबकि मार्ग-निर्धारण में अशोक स्तम्भों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्राचीन राजकीय काठमाण्डू ( नेपाल )-पाटलिपुत्र मार्ग पर स्थित अशोक स्तम्भों के आधार पर स्मिथ' का वैशाली-अनुसंधान, बुद्धकालीन इतिहास में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनकी धारणा है कि बौद्ध आख्यानों के आधार पर वैशाली की स्थिति गंडक के उत्तर दिशा में, पाटलिपुत्र के उत्तर की ओर, पाटलिपुत्र-कुशीनगर मार्ग पर होनी चाहिये । महानिर्वाण पूर्व गौतम बुद्ध की पाटलिपुत्र से कुशीनगर की यात्रा के सन्दर्भ के आधार पर उन्होंने लिखा है कि उस समय यात्रियों की मनोवृत्ति अधिकतर नदियों के घाटपर अपना पड़ाव डालने की थी। यही प्रयास रहता था कि वे सुविधानुसार इतनी दूर की यात्रा कर सकें जिससे उनका अगला पड़ाव नदी के घाट पर ही हो। स्मिथ द्वारा पाटलिपुत्र-कुशीनगर मार्ग के सन्दर्भ में यात्रियों की मनोवृत्ति के वर्णन से स्पष्ट संकेत मिलता है कि उनका आशय बुद्ध के महापरिनिर्वाण पूर्व को पाटलिपुत्र-कुशीनगर यात्रा वर्णन में गंगा और गंडकी नदी का महत्त्व प्रकट करना था, जिससे बुद्ध पाटलिपुत्र, लौरिया-नन्दनगढ़ मार्ग से आकर मही ( गंडक ) पार करते हुए पावा से कुशीनगर गये थे, जैसा कि महापरिनिर्वाण सूत्र से भी स्पष्ट है। कनिंघम ने इस मार्ग की ऐतिहासिकता एवं वास्तविकता स्वीकार कर पड़रौना को पावा माना है। उनके विचार से भी बुद्ध गंडक ( मही नदी ) पार कर पावा पहुँचे थे। वैशाली-कुशीनगर मार्ग के विषय में उपाध्याय का अभिमत है कि कार्लाइल, डा० राजबली पाण्डेय तथा त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ने सठियाँव फाजिलनगर को पावा की मान्यता देकर दिशा के आधार पर जिस मार्ग का प्रतिपादन किया है, वह उचित है। श्री उपाध्याय ने पडरौना को पावा स्वीकार किया है। उनका कथन है कि उक्त विद्वानों की मान्यता रही है कि दोनों स्थानों के बीच सीधी रेखा में ही बुद्ध चला करते थे। आगे जाकर पीछे नहीं मुड़ सकते थे, चक्करदार मार्ग नहीं ले सकते थे । परन्तु वे तो एक मुक्त पुरुष की भाँति विचरण करते थे, वे ब्रह्म१. कुशीनगर आर कुशीनगर एण्ड अदर बुद्धिस्ट होलीप्लेस-जर्नल, रायल एसियाटिक सोसायटी आव ग्रेट ब्रिटेन एण्ड आयरलैण्ड, पृ० १३९-१६३ २. बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ० ३२२-२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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