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पावा मार्ग अनुसंधान : १९३
दृष्टि से रमपुरवा के दोनों अशोक स्तम्भ मार्ग निर्देशन में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं । इन स्तम्भों के अनुसंधान का श्रेय कार्लाइल' को है । इसी के आधार पर उन्होंने ( नेपाल ) के प्राचीन मार्ग का प्रतिपादन किया है जिसका अनेक विद्वानों ने अनुमोदन किया है । यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस प्राचीन मार्ग से नेपाल की तराई में स्थित रमपुरवा से इसके उत्तर-पश्चिम में स्थित महात्मा बुद्ध के जन्म स्थान लुम्बिनी का कोई सम्बन्ध रहा है या नहीं । अशोक स्तम्भों के आधार पर रमपुरवा - लुम्बिनी मार्ग का निर्धारण होता है, जिसके अन्तर्गत निगलोवा नामक ग्राम स्थित है, जहाँ पर अशोक स्तम्भ दृष्टिगोचर होता है । यह ग्राम नेपाल में तिलौराकोट से ४ मील उत्तर-पूरब, पिपरहवा से ७८ मील उत्तरपश्चिम, लुम्बिनी से १३ मील उत्तर-पश्चिम की दिशा में स्थित है। यह सम्पूर्ण रूप से सुरक्षित नहीं है इसका ऊपरी भाग १४ ९-१/२" ऊँचा है | ( मध्यकालीन रेखाचित्र अंकित है ) इसका निचला भाग १०' ऊँचा है । कार्लाइल ने अपनी रिपोर्ट के अन्त में प्लेट नम्बर ६ में उक्त मार्ग का मानचित्र प्रस्तुत किया है जिससे यह स्पष्ट है कि यह प्राचीन मार्ग नेपाल की राजधानी काठमाण्डू से जुड़ा हुआ था । वैशाली से कपिलवस्तु, लुम्बिनी का बुद्धकालीन मार्ग पावा, कुशीनगर, पिप्पलिवन, रामग्राम इत्यादि नगरों से होकर जाता था जिसका बौद्ध साहित्य में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है ।
कार्लाइल र वैशाली - काठमाण्डू ( नेपाल ) मार्ग का अशोक स्तम्भ एवं स्तूप के आधार पर वर्णन करते हैं किन्तु लौरिया - नन्दनगढ़ से पड़रौना ( पावा ) की दिशा व दूरी को पूरी तरह विस्मृत कर देते हैं । वैशाली - कुशीनगर मार्ग, पड़रौना होकर जाता है और इस पर अशोक स्तम्भों की श्रृंखला दृष्टिगोचर होती है परन्तु वे इस वैशाली - कुशीनगर मार्ग को अनदेखा कर देते हैं । कार्लाइल वैशाली - कुशीनगर के, सठियाँव-फाजिलनगर होकर जाने वाले, जिस मार्ग को प्रतिपादित करते हैं, उस पर एक भी अशोक स्तम्भ निर्मित नहीं है । वास्तव में यह आश्चर्यजनक है कि कार्लाइल वैशाली - कुशीनगर मार्ग-निर्धारण में अशोक स्तम्भ की उपस्थिति की
१. कार्लाइल, ए० सी० एल०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट, टूर्स आन गोरखपुर, सारण, गाजीपुर, खण्ड XXII प्लेट नं० ६
२. वही, पृ० ५४-५८
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