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________________ १८४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा एक विमर्श कुशीनगर आरम्भ से ही विख्यात रहा है । कुशावती ( कुशीनगर ) की महत्ता रामायण काल से ही रही है । रघुवंश से ज्ञात होता है कि “स्थिर बुद्धि वाले राम ने शत्रुरूपी हाथियों के लिए अंकुश के समान भयदायक कुश को कुशावती का राज्य दे दिया और मधुर वचनों से सज्जनों की आँखों से प्रेमाश्रु की धारा बहाने वाले लव को शरावती का राज्य दिया ।"" कुशावती के विषय में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत रहे हैं। कुछ इसे गुजरात में तथा कुछ ने इसे विंध्य में अंकित करने की चेष्टा की है किन्तु इन दोनों प्रदेशों में उस समय पोरों और यादवों का राज्य था इसलिए कुशस्थली की भौगोलिक स्थिति की संभावना इन राज्यों में प्रतीत नही होती है। गुजरात की कुशस्थली ( द्वारिकापुरी ) कुश से भी प्राचीन नगरी रही है अतः उसको कुश द्वारा स्थापित बताना ऐतिहासिक व्यतिक्रम होगा | जिसप्रकार चन्द्रकेतु के लिए चन्द्रकांता नगरी बसायी गयी थी । उसीप्रकार कुश के राज्याभिषेक के लिए कुशावती नगरी का निर्माण हुआ था । कुशावती नगरी के इतिहास के विषय में कुशजातक से संकेत मिलता है - 'प्राचीन काल में मल्लराष्ट्र में कुशावती राजधानी में इक्ष्वाकु नामक ( इक्ष्वाकुवंशी ) राजा धर्मपूर्वक राज्य करते थे ।"" राजबली पाण्डेय ने भी इस तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखा है कि जिस प्रकार चन्द्रकेतु के नाम पर चन्द्रकांता नगरी बसायी गयी थी उसी प्रकार कुश के नाम पर कुशावती नगरी बसायी गयी थी । आज यह निर्विवाद सिद्ध है कि इतिहास प्रसिद्ध मल्लराष्ट्र की राजधानी कुशावती, कुशस्थली, कुशीनारा, कुशिग्रामक, कुशनगर वर्तमान कुशीनगर ही रही है। १. स निवेश्य कुशावत्यां रिपुनागांकुशं कुशम् । शरावत्यां सतां सूक्तैर्जनिताश्रु लवं लवम् II सर्ग १५, श्लोक ९७ । सीताराम चतुर्वेदी, कालिदास ग्रन्थावली ( रघुवंश ), अखिल भारतीय विक्रम परिषद, काशी, द्वि० सं०, वि० सं० २००१ । २. अतीते ग्रल्लरट्ठे कुशावती राजहानिया ओक्काको नाम राजा धम्मेन समेन रज्जं करोति । जातक संख्या ५३१ । ( वास्तव में इक्ष्वाकु नहीं, किन्तु इक्ष्वाकुवंशी ) । ३. पाण्डेय राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का इतिहास, पृ० ५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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