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________________ पावा मार्ग अनुसंधान : १८१ साथ भेजा कि “अथ रवो पिप्पलीवनिया मोरिया कोसिनारकानं मल्लानंदूतं पाहेसं-भगवापि खत्तियों मयंपि खत्तिया । मयंपि अरहाम भगवतो सरीरानं भागं । भगवान भी क्षत्रिय थे, हम भी क्षत्रिय हैं। भगवान के शरीर का भाग पाने के हम अधिकारी हैं। संयोग से यह संदेश कुशीनगर बाद में पहुंचा, इसके पूर्व ही बुद्ध के धातु अवशेषों का आठ भाग हो चुका था, चिता में केवल अंगार ( कोयला ) शेष थे। मौर्य उन अंगारों पर ही संतोष कर उन्हें आदर पूर्वक पिप्पलीवन ले गये और उन पर स्तूप निर्मित करवाये। गोरखपुर जनपद में सदर तहसील के अन्तर्गत धानी था (रुधौलिया) उपधौलिया स्थित है । धानी राजधानी का विकृत रूप है, जो सम्भवतः मौर्यों की राजधानी पिप्पलिवन के लिये प्रयुक्त है। गोरखपुर से १४ मील दक्षिण, दक्षिण-पूर्व, अर्द्ध दक्षिण की दिशा में गुर्रा नदी के तट पर स्थित उपधौलिया ही राजधानी है। धानी और बरही दो अलगअलग ग्राम हैं, जिनके बीच की दूरी ४ किमी० है। पश्चिम में राप्ती नदी से लेकर पूर्व में फरेन्द नदी तक चार मील की लम्बाई तथा १३/४ मील की चौड़ाई में, पिप्पलिवन ( राजधानी ) के भग्नावशेष फैले हुए हैं। इसका विस्तार डीह घाट से लेकर गुर्रा नदी के पूर्व में उपधौलिया डीह तक है। वहाँ से २/३ मील पर राघानी ग्राम स्थित है। राजधानी के उत्तर-पूर्व एक विस्तृत आयताकार, पुराने दुर्ग का अवशेष है, जिसे सहन कोट कहते हैं। वर्तमान में भी फरेन्द नदी के किनारे बरगद, शाल, जामुन आदि वृक्ष दृष्टिगोचर होते हैं। राप्ती से फरेन्द तक फैला हुआ यह डीह एक प्राचीन नगर का भग्नावशेष है। बौद्ध साहित्य एवं चीनी यात्रियों के यात्रा-वर्णन के आधार पर सहन कोट का सन् १८१४ में निरीक्षण एवं सर्वेक्षण करने वालों में बुकनन प्रथम थे। उनके अनुसार सहन कोट ( सहन-कट ) का किला जंगलों से इतना घिरा हुआ था कि दीवार तक पहुँचना कठिन था और किला १ कोस पश्चिम से पूर्व तक तथा इससे भी अधिक दूरी में उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ था। किले की दीवार मोटी थी और काफी ऊँची थी। इसके भग्नावशेष एक ऊँचे विस्तृत टीले के रूप में दृष्टिगोचर होते थे। १. दीघ निकाय (हि० अ० ) महापरिनिव्वाण सुत्त ३/२। २. माण्टगोमरी, मार्टिन, हिस्ट्री, एण्टीक्विटीज टोपोग्राफी एण्ड स्टैटिस्टिक्स आव ईस्टर्न इण्डिया, जिल्द II, भागलपुर गोरखपुर १९७६, पृ० ३७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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