SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श किनारे निर्मित था, वह गंगा के प्रवाह से टूट गया तथा स्तूप की प्रकाशवान धातु का करण्ड ( पिटारी) बहकर समुद्र में प्रविष्ट हो गया ।" राजबली पाण्डेय रामग्राम की स्थिति राप्ती नदी के किनारे मानते हैं। हो सकता है कि गंगा की अत्यधिक महत्ता के कारण अधिकांश नदियों को गंगा कहा जाता है । सिंहली साहित्य महावंस में प्रयुक्त गंगा शब्द भी राप्ती (अचिरावती) के लिये होगा। उनके अनुसार जिस स्तप को ह्वेनसांग ने देखा था वह मूल धातु-स्तूप नहीं था, उसे राप्ती नदी पहले बहा ले गयी थी, उसके स्थान पर निर्मित दूसरा स्तूप ही ह्वेनसांग को दिखाई पड़ा होगा । बौद्धधर्म के ह्रास के बाद मरम्मत के अभाव में स्तूप खण्डित एवं धराशायी होने लगे तथा राप्ती नदी एवं रामगढ़ के जल में डूब गये । शताब्दियों से रामगढ़ ताल भरता हुआ नगर की ओर हटता जा रहा है। गोरखपुर के पार्श्ववर्ती क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने पर पूर्व दिशा में अनेक ताल तलैया एवं निचली भूमियां एकसीध में दृष्टिगोचर होती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि राप्ती नदी कभी गोरखपुर के उत्तर-पूर्व दिशा से होकर बहती थी। ये सभी ताल-तलैया उसी नदी के अवशेष हैं। कालान्तर में इसका मार्ग बदल गया। अब वह गोरखपुर के दक्षिण-पश्चिम की ओर से बह रही है। इस तालाब के आधार पर अनेक भूगोलवेत्ताओं ने उपर्युक्त तथ्य को स्वीकार किया है, तथा उनका कथन है कि यह तालाब एवं निचली भूमि राप्ती नदी का छाड़न है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि गोरखपुर तथा रामगढ़ ताल का क्षेत्र ही वास्तविक रामग्राम रहा है। पिप्पलिवन __श्रावस्ती-कुशीनगर मार्ग पर रामग्राम और कुशीनगर के बीच स्थित पिप्पलिवन मोरिय ( मौर्य ) राज्य की राजधानी थी। यहाँ सघन पीपल वृक्षों का जंगल होने के कारण इसे पिप्पल वन की संज्ञा दी गयी थी। बद्ध के धातु अवशेषों को प्राप्त करने के लिए उत्तर भारत के सभी गणतंत्राध्यक्षों एवं कतिपय राज्याध्यक्षों ने प्रयास किया था। पिप्पलीवन के मौर्य क्षत्रियों ने भी कुशीनगर के मल्लों के पास अपना दूत इस संदेश के १. डा. पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का इतिहास, पृ० ६९-७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy