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________________ पावा मार्ग अनुसंधान : १७९ उपाध्याय ने भी कार्लाइल के मत का खण्डन करते हए डॉ० पाण्डेय के मत को पूष्ट किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि कार्लाइल ने रामपूर देवरिया को रामग्राम सिद्ध करने के लिए उपर्युक्त तर्क प्रस्तुत किया था, जो उचित नहीं है। स्मिथ' का यह सुझाव कि रामनाम का अनुसंधान धर्मोली (धर्मपुरी) के आस-पास नेपाल और गोरखपुर की सीमा पर करना चाहिए, आग्रहपूर्ण प्रतीत होता है । धम्मपद अट्ठकथा के अनुसार निश्चित रूप से रामग्राम रोहिणी नदी के पूर्व में रहा होगा ( रोहिणी के पश्चिम शाक्यों का राज्य था ) इसको स्थिति रोहिणी की बायीं घाटी के दक्षिण भाग में हो होनी चाहिये, क्योंकि उत्तर की ओर मल्ल राष्ट्र फैला हुआ था। ____गोरखपुर नगर के समीप स्थित विशाल रामगढ़ ताल को प्राचीन रामग्राम से समीकृत किया जाता है। रामगढ़ शब्द से इसके किसी समय गढ़ अथवा दुर्ग होने का आभास होता है पर वास्तव में यह स्थली बुद्धकालीन, कोलियों की राजधानी रामग्राम थी। यहाँ कोलियों ने एक पुष्करिणी के किनारे बुद्ध के धातु-अवशेषों पर स्तूप का निर्माण करवाया था। गाइल्स के अनुसार पाँचवीं सदी में फाह्यान ने रामग्राम नगर को भग्नावस्था में देखा था, नगर के किनारे एक पुष्पकरिणी थी। वहाँ एक नाग होने का भी उल्लेख है, जो स्तूप की रक्षा करता था। अशोक की रामग्राम यात्रा के सन्दर्भ में इस नाग का उल्लेख आता है। उनके मतानुसार अशोक ने जब रामग्राम के स्तूप के पुनःनिर्माण के समय इसके तल में रखे गये धातु अवशेषों को निकलवाने का प्रयास किया, तब नाग की प्रार्थना पर उसने अपने विचार त्याग दिये। ह्वेनसांग के यात्रा-विवरण में प्रदत्त दिशा और दूरी के आधार पर भी रामग्राम की स्थिति मेल खाती है। वर्तमान में रामगढ़ ताल के किनारे किसी स्तूप का भग्नावशेष नहीं है, जिसका कारण सम्भवतः राप्ती नदी एवं रामगढ़ ताल है। महावंस" से ज्ञात होता है कि रामग्राम का स्तूप गंगा के १. टिप्पणी (स्मिथ), वाटर्स, आन ह्वेनसांग ट्रैवेल्स इन इण्डिया, वा० II पृ० ३३९, २. धम्मपद अट्ठकथा-सं० डा० टाटिया, नथमल, १५-७ ३. गाइल्स, एच० एच०, ट्रैवेल्स आव फाह्यान, पृ० ३८-३९ ४. वाटर्स, आन ह्व नसांग ट्रैवेल्स इन इण्डिया, वा० II, पृ० २०, ५. महावंस ( हिन्दी अनु० ) पृ० २५, २६, ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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