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________________ १७८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श रामग्राम : कोलियों ने कोलिय गणतन्त्र की राजधानी रामग्राम में बुद्ध महापरिनिर्वाण के पश्चात् उनके धातु अवशेषों को लाकर उस पर एक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया था । कोलिय राज्य एवं इसकी राजधानी रामग्राम की भौगोलिक स्थिति के विषय में विभिन्न विद्वानों में मतभेद रहा है । कनिंघम' के अनुसार चीनी यात्रियों ने कपिलवस्तु से रामग्राम तक की यात्रा की थी। फाह्यान का अभिमत है लुम्बिनी से ५ योजन (४० मील) की दूरी पर रामग्राम स्थित था । ह्वेनसांग ने इसकी दूरी २०० ली ( लगभग ३३ 2 मील ) बताई है । यह ग्राम वैशालीश्रावस्ती मार्ग पर पिप्पलीवन एवं कपिलवस्तु के बीच स्थित था । चीनी यात्रियों के यात्रा-वर्णन के आधारपर रामग्राम कपिलवस्तु और अनोमा नदी के बीच दो तिहाई दूरी पर स्थित होना चाहिये । यह दूरी ४ योजन ( ३२ मील) है, इसी आधार पर वे देवकाली को रामग्राम के रूप में समीकृत करने का प्रयास करते हैं, जो तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है । कार्लाइल' ने वर्तमान रामपुरवा, रामपुर देवरिया को रामग्राम माना है । यह स्थान मरवाताल के किनारे तथा भुलिया से ठीक २६ मील सीधी रेखा में दक्षिण - पूर्व पर स्थित है। उन्हें यहाँ एक स्तूप भग्नावशेष के रूप में, रामपुर देवरिया से ५०० फीट उत्तर-पूर्व में दो तालों के बीच, दृष्टिगोचर हुआ था । इसे उन्होंने कोलियों के रामग्राम का स्तूप माना था । लेकिन राजबली पाण्डेय रामपुर देवरिया को रामग्राम नहीं मानते हैं । उनके अनुसार यह मुण्डेरा से १ मील दक्षिण-पूर्व मरवाताल के किनारे रामपुर देवरिया से ५००' उत्तर-पूर्व में दो तालों के बीच स्थित है । डॉ० पाण्डेय ने कहा है कि कार्लाइल ने, ह्व ेनसांग का यह विवरण कि रामग्राम का स्तूप नगर के दक्षिण-पूर्व में था, सही नहीं माना है । कार्लाइल के मत में वस्तुतः रामग्राम से उत्तर-पूर्व में स्थित स्तम्भ - स्तूप को दिशा-भ्रम के कारण ह्व ेनसांग ने दक्षिण - पूर्व में स्थित मान लिया है । परन्तु कार्लाइल का मत पाण्डेय को तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है । डॉ० भरत सिंह १. कनिंघम, ए०, एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया - पू० पृ० ३५४-५५ । २. कार्लाइल, ए० सी०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट टूर्स आन गोरखपुर, सारण, गाजीपुर — पृ० २ । ३. डॉ० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और इसकी क्षत्रिय जातियों का इतिहास -- पृ० ६९ । ४. उपाध्याय, भरतसिंह, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ० ३०९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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