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पावा मार्ग अनुसंधान : १७७ सिरसराव के निकट उत्तर-पूर्व में है। सिरसरा ग्राम प्राचीन भग्नावशेष के टीले पर स्थित है, जहाँ से लगभग ४००' की दूरी पर, पूर्व में एक स्तूप निर्मित था, जिसके ऊपर शिवलिंग स्थापित है। कार्लाइल का स्पष्ट मत है कि बुद्ध द्वारा यहाँ पर मुण्डन करवाने के कारण इस ग्राम को सिरसरा सम्बोधित किया गया है। सिरसरा स्तूप से लगभग ३००' उत्तर-पूर्व में एक विशाल ठोस ईंटों का टीला है जिसका व्यास लगभग ५०' तथा परिधि लगभग १६०' एवं ऊँचाई ५' से ६' है। यह अशोक निर्मित स्तूप का भग्नावशेष है यहीं बुद्ध ने सेवक छन्दक एवं अश्व को विदा किया था। इस स्तूप से लगभग ३७०' उत्तर में महाथान ( महास्थान) नाम से प्रख्यात ईंटों का विशाल एक गोलाकार टीला है जिसका शीर्ष भाग अद्ध वृत्ताकार है। यह टीला बुद्ध द्वारा राजसी वस्त्र त्यागकर संन्यास धारण करने का स्मारक स्थल है। इसके समीप पूर्वी ओर महाथान ग्राम और लगभग ६००' दक्षिण-पूर्व में पैथन नामक ग्राम है। इससे बोध होता है कि पैथन का अभिप्राय, बुद्ध के चरण-स्थान से है, जहाँ से उन्होंने पदयात्रा आरम्भ की थी, अथवा प्रवेश करने से है, जहाँ से उन्होंने संन्यासी जीवन में प्रवेश किया था। उपयुक्त तथ्य की पुष्टि कनिंघम' तथा फ्यूरर ने की है। ____ मगहर से लगभग ६ मील उत्तर आमी नदी के तट पर कोपियाग्राम है। यहाँ पर प्राचीन खण्डहरों के अवशेष के रूप में ईटों का विशाल टीला दृष्टिगोचर होता है, इसका व्यास लगभग १/३ मोल है, जिसकी बनावट व्यतिक्रमिक है। इससे थोड़ी देर पूर्व में कामेश्वर नामक अर्वाचीन शिव मन्दिर है, जो कोपेश्वर मन्दिर नाम से ख्यात है।
उपरोक्त विवरण से निष्कर्ष निकलता है कि कपिलवस्तु-रामग्राम मार्ग पर बाँसी-महादेव, कोपिया, तामेश्वर, महाथान ( महास्थान आदि) बुद्धकालीन प्रमुख नगर रहे हैं। ये नगर संभवतः शाक्यों के ९ प्रमुख नगरों में रहे हैं।
१. कनिंघम, ए०, प्रस्तावना, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट टूर्स
आन गोरखपुर, सारण, गाजीपुर १८७७-७८, ७९-८०, वा० XXII
पृ० ३। २. फ्यूरर ए०, मानुमेण्टल एण्टीक्विटीज़ इन नार्दनं वेस्टर्न प्राविन्सेज एण्ड
अवध, पृ० २२४-२२६ ।
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