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* १७२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
है । ह्वेनसांग की कपिलवस्तु यात्रा के आधार पर इसकी पुष्टि वील' ने भी है | कपिलवस्तु के सर्वेक्षण से उक्त स्तम्भ का अभिज्ञान नहीं होता है ।
पिपरहवा के उत्खनन से कपिलवस्तु का विवाद सदा के लिए समाप्त गया है तथा बौद्धकालीन शाक्यों की राजधानी वास्तविक कपिलवस्तु की पहचान हो गई है । उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु ( पिपरहवाँ ) ही रही है ।
श्रावस्ती
श्रावस्ती से कपिलवस्तु पश्चिम- पश्चिमोत्तर दिशा में लगभग १०० किमी की दूरी पर स्थित है | श्रावस्ती को आधुनिक काल में सहेत - महेत - कहा जाता है ।
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सहेत - महेत - बुद्धकालीन कोसलदेश की राजमानी श्रावस्ती, बहराइच जनपद, उ० प्र० में बलरामपुर - बहराइच मार्ग पर राप्ती के तट पर • बलरामपुर गोडा से २८ कि०मी० पश्चिमोत्तर दिशा में २७° ३९ उत्तरी अक्षांश तथा ८२°१ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। बुद्धकाल में ये भारत के ६ महानगरों और ८ महत्त्वपूर्ण धार्मिक नगरों में गिने जाते थे । ये परस्पर राजमार्ग से जुड़े थे ।
श्रावस्ती में जैन तथा बौद्ध धर्मावलम्बियों की बहुलता होने से यहाँ महावीर तथा बुद्ध का निरन्तर आवागमन होता था । यहाँ के प्रसिद्ध राजा प्रसेनजित् महावीर तथा बुद्ध के समकालीन थे । ये पहले महावीर के समर्थक थे, बाद में बुद्ध के सम्पर्क में आने पर उनके अनुयायी हो गये । जैन एवं बौद्ध साहित्य में प्रसेनजित् विषयक बहुत गाथाएँ प्रचलित हैं । बुद्ध के जीवन की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनायें यहाँ से जुड़ी हुई हैं । यहाँ स्थित अनाथपिण्डिक द्वारा बुद्ध के आवास हेतु निर्मित जेतवन विहार में बुद्ध द्वारा ( २१ वें से ४५ वें तक ) २५ वर्षावास तथा निरंतर विश्राम, दस्यु अंगुलीमाल द्वारा बुद्ध से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म का अंगीकार, शास्त्रार्थ में परास्त होने पर पूर्ण काश्यप द्वारा आत्महत्या इत्यादि कथायें श्रावस्ती से सम्बद्ध हैं ।
जेतवन के विशाल विहार के निर्माण में बत्तीस करोड़ स्वर्ण मुद्रायें
१. वील सैमुएल, बुद्धिस्ट रेकार्ड आव वेस्टर्न वर्ड, वा० II, पृ० १९, ३२,
लन्दन,
१९०६ ।
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