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पावा मार्ग अनुसंधान : १७१ हैं। इन सामग्रियों में कलश का ढक्कन महत्त्वपूर्ण है जिस पर निम्नलिखित अभिलेख उत्कीर्ण है :
सुकितिभतिनं सभगिनिकंस पूतदलनं ।
इयं सलिलंनिधने वुधस भगवते सकियानं ।। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग ने के० एम० श्रीवास्तव' के निर्देशन में जनवरी १९७२ में पूनः इस स्तूप का उत्खनन कार्य आरम्भ करवाया। स्तूप के पश्चिमी भाग की आंशिक खुदाई करने पर ज्ञात हुआ कि निचला भाग वर्गाकार था और इसमें ८५ सेमी० की दूरी पर आले बने थे, जो सम्भवतः मूर्ति रखने के उपयोग में आते थे। स्तूप के ऊपरी भाग से ६ मीटर नीचे पक्की ईंटों के दो कोष्ठक ८२४८० x ३७ सेमी० दृष्टिगोचर हुए, उत्तरी कोष्ठक के ऊपर से ईंटों के तीन रद्दे हटाने के बाद सेलखड़ी का एक धातु कलश और इसके बगल में लाल रंग की खण्डित परई से ढकी, इसी प्रकार को अन्य परई मिली। दक्षिणी कोष्ठक में दो कलश, एक खण्डित तश्तरी एवं अनेक ढकी हुई परइयाँ प्राप्त हुई। ये सभी अवशेष उत्तर भारतीय कृष्ण परिमार्जित भाण्ड (एन० बी० पी०) के काल के मिले जिससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि ये सामग्रियाँ ई० पू० पाँचवीं, चौथो शताब्दी की हैं।
उपयुक्त विवरण से प्रतीत होता है कि अपने हिस्से के बुद्ध के धातु अवशेषों के आठवें भाग को शाक्यों ने पुनः प्रभावशाली स्वजनों में वितरित कर लिया। इन लोगों ने अपनी रुचि के अनुसार इन अवशेषों को विभिन्न पात्रों में पूजार्थ रख दिया था। स्तूप के निर्माण के समय कुछ, लोगों ने धातु अवशेष अंश को स्तूप में रख दिया होगा। ___ अभिप्राय यह है बुद्ध के धातु अवशेषों को इस स्तूप में कपिलवस्तु के शाक्यों द्वारा स्थापित करवाया गया था। समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है, इसके जीर्णोद्धार में अशोक का महान् योगदान रहा है ।
वाटर्स के अनुसार फाहियान ने अपनी यात्रा के समय अशोक द्वारा निर्मित स्तूप एवं स्तम्भ का विस्तृत वर्णन किया है। उन्होंने स्तूप की ऊँचाई ३०' बताई एवं इसके शीर्ष भाग पर निर्मित सिंह की भी चर्चा की
१. श्रीवास्तव, के ० एम०, स्टडीज इन इण्डियन एपिग्राफी, भाग २, पृ० १०६,
१०८, मैसूर, १८७५ । २. वाटर्स, थामस, ऑन ह्वेनसांग ट्रेवल्स इन इण्डिया, वा० II, पृ० ५-७ ।
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