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आत्म-निवेदन : १७
मैं आकाशवाणी केन्द्र गोरखपुर के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ जहाँ मुझे पावा के विषय में अपना विचार प्रस्तुत करने के लिए समयसमय पर अवसर प्रदान किया गया जिससे मेरा उत्साहवर्धन हुआ । मैं उन समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के सम्पादकों का बहुत आभारी हूँ जिन्होंने पावा सम्बन्धी लेखों को प्रकाशित करने की कृपा की ।
प्रो० कृष्ण देव जी ( सलाहकार अमेरिकन इंस्टीच्यूट आव इण्डियन स्टडीज रामनगर, वाराणसी तथा भूतपूर्व निदेशक, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग भारत सरकार नई दिल्ली ) एवं प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी ( पूर्व विभागाध्यक्ष प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग सागर विश्वविद्यालय, सागर म० प्र० ) ने मेरा निरन्तर मार्गदर्शन किया है एवं मुझे प्रेरित किया है। प्रो० कृष्णदेव जी ने सहर्ष इस पुस्तक का प्राक्कथन और प्रो० वाजपेयी ने प्रस्तावना लिखकर मुझ पर महती कृपा की है ।
इस पुस्तक में उपलब्ध मानचित्रों के रेखांकन में श्री पी० वी० सिंह राणा से बहुमूल्य सहयोग मिला अतः मैं उनका आभारी हूँ । ग्रन्थ के पाण्डुलिपिकर्ता श्री शिवमूर्ति पाठक का भी मैं हृदय से आभारी हूँ ।
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के निदेशक डा० सागरमल जैन ने इसे प्रकाशित करने की स्वीकृति देकर जो उदारता दिखाई है उसके लिए मैं उनका और संस्थान के प्रबन्धकों का आभारी हूँ ।
अन्त में महान जर्मन कवि गेटे के शब्दों 'सत्य को असत्य से, निश्चित को अनिश्चित से और असंदिग्ध को संदिग्ध से पृथक् करना इतिहासकार का अपना कर्तव्य है' के साथ विद्वानों, इतिहासवेत्ताओं, पुरातत्त्वविदों, भूगोल शास्त्रियों एवं वैज्ञानिकों से नम्र निवेदन है कि अपने गहन अनुशीलन, मनन, अध्ययन एवं सर्वेक्षण द्वारा वास्तविक पावा की खोज में सहायक हों, जिससे इस सम्बन्ध में अब तक जो भी भ्रान्तियों फैली हुई हैं वे सदा के लिए दूर हो सकें तथा वास्तविक पावा की पहचान हो सके । मैं अपने इस अकिंचन प्रयास को इतिहासकारों, पुरातत्त्ववेत्ताओं एवं विद्वानों को समर्पित करता हूँ
त्वदीयं वस्तु गोविन्दं तुभ्यमेव समर्पये ।
खेतान हाउस,
पड़रौना, देवरिया (उ० प्र०) पिन - 274304
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-भगवती प्रसाद खेतान
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