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पावा मागं अनुसंधान : १६७
लगभग १० मील की दूरी पर इस समय भी गंडक के किनारे पर स्थित है, यहाँ से पडरौना जाने के लिए गंडक के नदी पार करने की विशेष सुविधा है, यह सबसे निकटवर्ती मार्ग है। __ अशोक स्तम्भ बुद्धकाल में राजमार्गों की आधारशिला रही है। वैशाली-श्रावस्ती मार्ग पर अनेक स्तम्भ दृष्टिगोचर होते हैं। इसी आधार पर पड़रौना को पावा के रूप में नकारा नहीं जा सकता है, क्योंकि जनश्रुति के अनुसार पड़रौना के प्राचीन टीले के निकट दक्षिण-पश्चिम की दिशा में कृषकों के खेत में जुताई करते समय एक लम्बा प्रस्तर खण्ड दिखाई दिया था, जिसे उसने अपने खेत में इसलिए दबा दिया था कि यदि यह तथ्य प्रकाश में आयेगा तो इसका खेत सरकारी कब्जे में चला जायेगा । सम्भवतः यह प्रस्तर खंड कोई विशाल मूर्ति या अशोक स्तम्भ का अंश है जिसका वास्तविक ज्ञान उस खेत के उत्खनन से ही हो पायेगा। अशोक स्तम्भों के आधार पर यहो प्रतीत होता है कि पड़रौना ( पावा ) वैशाली और श्रावस्ती राजमार्ग पर स्थित है । यहाँ से प्राप्त पुरातात्त्विक साक्ष्य एवं अनेक मूर्तियाँ, प्रतिमाएँ, कलाकृतियाँ, शुंग, गुप्त, पाल इत्यादि काल के इतिहास को प्रतिबिम्बित करती है। क्षेत्रीय इतिहास के झरोखे से झाँकने में सहायता करती हैं तथा स्थल की प्राचीनता की पुष्टि करते हुए पावा की ओर संकेत करती हैं । कुशीनगर ___ कुशीनगर कसया के निकट पड़रौना से १२ मील की दूरी पर दक्षिणपश्चिम में स्थित है, जो महात्मा बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर चुका है । कुशीनगर के निकट होने के कारण पड़रौना और कुशीनगर दोनों का क्षेत्र एक ही है। एक का इतिहास दूसरे से जुड़ा हआ है, दोनों की आर्थिक सम्पन्नता, शासन व्यवस्था, सामाजिक परम्परायें, सांस्कृतिक एवं कला की अभिरुचियों का परस्पर अन्यान्य सम्बन्ध है । समयानुसार किसी भी राज्य का उत्थान, पतन, विस्तरण एवं संकुचन होता रहता है।
पावामार्ग-अनुसंधान-११ बौद्ध साहित्य में वर्णित बुद्धकालीन श्रावस्ती-वैशाली मार्ग का अशोक स्तम्भों के आधार पर अध्ययन करने पर उक्त मार्ग स्थित १. (अ) खसरा नं० २५१८, २५१९, कृषक का नाम टूकर घोषी।
(ब) २५०४, २५०५, कृषक का नाम बुधई घोषी।
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