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१६६ : महावोर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श इस पर भी १७९२ में अपना हस्ताक्षर अंकित किया था, इस वर्ष उनका देहान्त भी हो गया।
अशोक स्तम्भ के दक्षिण-पश्चिम में ५.५ टीलों की ३ पंक्तियाँ दृष्टिगोचर होती हैं, इसमें दो कतारें समानान्तर उत्तर-पश्चिम-दक्षिण हैं तथा दूसरी कतार स्तम्भ के दक्षिणी ओर पूर्व से पश्चिम तक है। इसके अतिरिक्त नन्दनगढ़ का विशाल स्तूप ग्राम से १ मील की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है । यह २५० वर्गफुट वर्गाकार टीले के रूप में दृष्टिगोचर होता है। पुरातत्त्ववेत्ताओं द्वारा इन टीलों तथा स्तूपों का समय-समय पर निरीक्षण, सर्वेक्षण तथा उत्खनन किया गया है, जिनसे अनेक सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं।
डी० आर० पाटिल' के अनुसार टीलों के उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों में शवपेटिका, मानव अस्थिपंजर, हड्डी के टुकड़े, स्वर्ण पत्र पर नारी आकृति, इत्यादि प्रमुख हैं। नन्दनगढ़ के विशाल टीले से विभिन्न प्रकार को प्राप्त वस्तुओं, मिट्टी के बर्तन के रंगीन टुकड़े, चाकू, कटार, तीर तथा अन्य अस्त्र, कलम पर खड़ी हुई लक्ष्मी की प्रतिमा, जिसके दोनों तरफ सेविकाएँ चित्रित हैं, विभिन्न मुद्रायें, ताँबे का बर्तन इत्यादि महत्त्वपूर्ण हैं। इस टीले के उत्खनन से प्राप्त बर्तनों के टुकड़ों पर नारी की विभिन्न प्रकार की केश सज्जा की मुद्रायें विशेष उल्लेखनीय हैं।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि नन्दनगढ़ ग्राम वैशाली, श्रावस्ती मार्ग पर स्थित प्राचीन ग्राम रहा है। यहाँ का अशोक स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अखण्ड, अनुपम एवं आकर्षक है और प्रत्येक दृष्टि से सुरक्षित है। पडरौना___ कनिंघम ने लौरिया नन्दनगढ़ का वर्णन करते हुए स्पष्ट रूप से लिखा है कि यहाँ से गंडक की दूरी १० मील है। उन्होंने इस सन्दर्भ को जुलीयन्स ह्वेनसांग, पृ० ४०२, मानचित्र सं० ११ से उद्धृत किया है। आधुनिक काल में भी यहाँ से पश्चिम दिशा में गंडक की दूरी लगभग १० मील है । उन्होंने लिखा है कि पडरौना, लौरिया नन्दनगढ़ (नवन्दगढ़) से सीधी रेखा में दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम के कोने पर २७ मील की दूरी पर स्थित है। रतवल ग्राम लौरिया नन्दनगढ़ से पश्चिमोत्तर दिशा में
१. वही, पृ० २३६, २४४ ।। २. कनिंघम, ए०, एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ३७८ ।
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