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पावा मार्ग अनुसंधान : १६३ पश्चिम में महत्त्वपूर्ण ग्राम मठिया रहा है, यद्यपि लौरियानन्दनगढ़ ग्राम अशोक स्तम्भ से १/२ मील पर ही स्थित है ।
१८६२ में ए० कनिंघम' ने इसका निरीक्षण / सर्वेक्षण किया था । इसके निकटवर्ती टीलों तथा विशाल किलों के भग्नावशेषों को देखकर उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषित किया कि यह लौरिया नवन्दगढ़ है । यद्यपि नवन्दगढ़ ग्राम अप्रसिद्ध रहा है, लेकिन प्राचीन टीले के आधार पर इसको महत्ता देने तथा नवन्दगढ़ टीले के अनुसंधान का श्रेय कनिंघम को है । स्मिथ ने सर्वप्रथम नवन्दगढ़ का शुद्ध नामकरण नन्दनगढ़ किया है, जो उचित प्रतीत होता है ।
ए० कनिंघम के मत में ये गुम्बदाकार स्तूप एवं राजभवनों के भग्नावशेष बुद्धकाल से पूर्व १५०० ई० पूर्व से ६०० ई० पूर्व के मध्य के होंगे। कोले ब्रुक द्वारा अनूदित 'अमर कोश' से उन्हें ज्ञात हुआ कि उस काल में स्तूप मिट्टी द्वारा निर्मित किये जाते थे । इसी आधार पर उन्होंने सम्भावना व्यक्त की है कि मिट्टी निर्मित लौरिया नन्दनगढ़ के स्तूप पूर्व बुद्धकालीन हैं । इन टोलों को वे पौराणिक राजा उत्तानपाद का राजभवन तथा निकटवर्तीय टीलों के समूह को उनके मंत्रियों का निवास स्थान मानते हैं । वज्जि राजाओं के स्तूपों के विषय में महात्मा बुद्ध ने आनन्द को सूचित किया था कि इन स्तूपों की वहाँ के नागरिक श्रद्धा एवं आदरपूर्वक पूजाआराधना किया करते थे ।
ए० कनिंघम के १८६१-६२ के सर्वेक्षण रिपोर्ट तथा उसमें संलग्न रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि यह स्तम्भ नवन्दगढ़ ग्राम से लगभग १/२ मील उत्तर-पूर्व तुरकहा नाला के पश्चिमी तट पर स्थित है । चमकीले प्रस्तर से निर्मित स्तम्भ ३२ - ९" ऊँचे शीर्ष भाग पर सिंह प्रतिमा निर्मित है । सिंह की ऊँचाई ६' १० " है । इस प्रकार धरातल से इसकी ऊँचाई ३९ ७" है । इस स्तम्भ के नीचे का व्यास ३५ / ४ तथा शीर्ष भाग का
१. कनिंघम, ए० - एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ३७८-३७९
२. जरनल आव रायल एशियाटिक सोसायटी आव ग्रेट ब्रिटेन एण्ड आयरलैण्ड, पृ० १५३, १९०२,
३. कनिंघम, ए०, एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ३७८ - ३७९ ।
४. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट, वाल्यूम I, पृ० ७४-७५ ।
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