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पावा मागं अनुसंधान : १५९ लौरिया शब्द की उत्पत्ति के विषय में विचार करना अप्रासंगिक नहीं होगा । डॉ० राजबली पाण्डेय के मत में लौरिया, संस्कृत शब्द 'लिंग' (लगुड) तथा भोजपुरी शब्द, 'लउर' से बना है । भाषा विज्ञान के आधार पर भोजपुरी भाषा में लौरिया शब्द का विश्लेषण किया जाय तो ज्ञात होगा कि 'लउर' से लबदा, लाठी क्रमशः परिवर्तित हुआ है। अतः प्रतीत होता है कि लौरिया शब्द का अभिप्राय लाठी से है। जनश्रुति में इसे भीम की लाठी कहा जाता है। कुछ लोग शिव का लिंग अथवा लउर कहते हैं, जिसे पवित्र मानकर पूजा होती है । अरेराज तथा नन्दनगढ़ के विशेषण के रूप में लौरिया का प्रयोग हुआ है। लौरिया अरेराज तथा लौरिया नन्दनगढ़ के नामकरण का श्रेय कनिंघम को है।
लौरिया अरेराज का अशोक स्तम्भ यात्रियों, विद्वानों एवं पुरातत्त्ववेत्ताओं के लिए आरम्भ से ही आकर्षण का केन्द्र रहा है, जिसका विस्तृत विवरण पुरातात्त्विक साहित्य से ज्ञात होता है । इस स्तम्भ का उल्लेख जर्नल आफ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बगाल, आर्कियोलाजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया की वार्षिक रिपोर्टस,स्टेटिस्टिकल एकाउन्ट, बंगाल लिस्ट, बंगाल एण्ड उड़ीसा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर एवं कुरेशी लिस्ट में उपलब्ध है।
१९३४ में हग्सन ने एक टिप्पणी स्तम्भ के रेखाचित्र के साथ प्रिंसेप को भेजा था, जो १८३५ में प्रिंसेप की टिप्पणी के साथ प्रकाशित हुआ। उक्त लेख में इस स्तम्भ को "रधिया" या सारूनलाट के नाम से सम्बोधित किया गया, जिसका एकमात्र कारण था कि उस समय लौरिया अरेराज ग्राम नगण्य था, रहरिया अथवा रूहरिया उस समय महत्त्वपूर्ण ग्राम था जो यहाँ से १/२ मील उत्तर पश्चिम में है। लौरिया अरेराज १. डॉ० पाण्डेय, राजबली, अशोक अभिलेख, पृ० ४१ २. कनिंघम, ए०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट, वाल्यूम I पृ०
६७-६८ ३. जर्नल आफ एशियाटिक सोसाइटी आव बंगाल, कलकत्ता, पृ०१२४-१२६,
१८४७ ४. कनिंघम, ए०-आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोटस, १८६१-६२,
खण्ड १, पृ० ६७-६८ "५. हण्टर, स्टैटिस्टिकल एकाउण्ट आव बंगाल, वाल्यूम XIII, पृ० २५४ ६. बंगाल लिस्ट-पृ. ३७८ ७. बंगाल, उड़ीसा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स, पटना, पृ० १३८-१४१ ८. कुरेशी लिस्ट पृ० ५-९
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