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१५८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श विवरण के आधार पर केसरिया के सम्बन्ध में वील' ने लिखा है कि लिच्छवि बुद्ध के प्रति श्रद्धा एवं प्रेम से भाव-विभोर होकर उनके साथ निर्वाण-स्थली कुशीनगर जाना चाहते थे, किन्तु बुद्ध ने वैशाली के नागरिकों को स्मति रूप में अपना भिक्षा पात्र देकर सान्त्वनायुक्त उपदेश से आश्वस्त कर केसरिया से विदा किया । लिच्छवि भिक्षा पात्र पाकर अत्यन्त हर्षित होकर, गौरव अनुभव करने लगे। इसके उपलक्ष में, वैशाली में महोत्सव मनाया गया । बुद्ध को महापरिनिर्वाण के लिए विदा करने तथा उनसे भिक्षा पात्र प्राप्त करने के कारण केसरिया स्थल की इतनी महत्ता बढ़ गयी कि लिच्छवियों ने इसके स्मारक के रूप में यहाँ चतुष्पथ पर स्तूप का निर्माण कराया, जिसकी पुष्टि कनिंघम ने की है।
चतुष्पथ पर निर्मित स्तूप सिंहली साहित्य के उस उल्लेख से साम्य रखता है जिसमें कहा गया है कि बुद्ध ने अपने शिष्य आनन्द से चक्रवर्ती राजा के लिए चतुष्पथ पर स्तूप का निर्माण करवाने का उपदेश दिया था। यह तथ्य कनिंघम को टर्नर द्वारा लिखित जर्नल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल, कलकत्ता से प्रकाशित लेख से ज्ञात होता है । उन्होंने लिखा है यहाँ एक प्रसिद्ध चौराहा है, जो पटना बेतिया मार्ग तथा छपरा से गंडक पार कर नेपाल मार्ग को जोड़ता है, इन मार्गों का विवरण ह्वेनसांग की यात्रा के वर्णन से ज्ञात होता है। लौरिया अरेराज :
केसरिया से २० मील उत्तर-पश्चिम, बेतिया से १९ मील दक्षिण-पूर्व, मोतीहारी से १६ मील पश्चिम, गोविन्दपुर मार्ग २६°३३' अक्षांश एवं ८४.२४' देशान्तर रेखा पर अरेराज ग्राम स्थित है। इसी ग्राम के निकट दूसरा अशोक स्तम्भ निर्मित है। यह स्तम्भ लौरिया ग्राम से पूरब में स्थित है इसका शीर्ष भाग लुप्त है। चमकीले पालिशदार बलुए प्रस्तर के इस स्तम्भ पर सुन्दर अक्षरों में अशोक की राजाज्ञायें एवं धर्मोपदेश ४ पूर्व की एवं २ पश्चिम की ओर उत्कीर्ण हैं।
१. वील, सैमुएल बुद्धिस्ट रेकार्डस् आव द वेस्टनं वर्ड, खण्ड १ भाग २ पृ०
७७-८०, लन्दन १९०६, ह्वेनसांग ट्रेवल्स इन वैशाली, अभिनन्दन ग्रन्थ
पृ० ३३६ २. कनिंघम, ए०, द एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ३२६ ३. कनिंघम, ए०, आकियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट १८६१-६२, खण्ड
१ पृ० ६४-६७, खण्ड १६, पृ० २७६,
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