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पावा माग अनुसंधान : १५७. के चारों ओर परिक्रमा मार्ग होना चाहिए। कनिंघम के पश्चात् टी० ब्लूच' ने इस स्थली का निरीक्षण एवं सर्वेक्षण कर अनेक सूचनाएं प्राप्त की लेकिन वे अपूर्ण रहीं। ___ केसरिया के स्तूप को राजावेन का देवरा कहा जाता है। कनिंघम' ने अपने भ्रमण काल में प्रचलित जनश्रुति के आधार पर लिखा है कि राजावेन यावेन एक पौराणिक राजा हुए हैं। उन्होंने अपनी रानी (कमलावती) के निकट के तालाब में, डूब मरने पर शोकाकुल होकर परिवार सहित इस टीले पर आत्मदाह कर लिया था। यह उन्हीं का स्मारक है। इसे आज भी राजावेन चक्रवर्ती के नाम से सम्बोधित किया जाता है। पाटिल के अनुसार इस टीले की गौरव गाथा का सम्बन्ध बुद्धकालीन स्वर्णयुग से रहा है। उन्होंने इस टीले की विशालता की तुलना कुशीनगर के निकट रामभार स्तूप से की है, जहाँ बुद्ध की महापरिनिर्वाण के पश्चात् अन्त्येष्टि हुई थी।
इस स्तूप से १/२ मील उत्तर-पूर्व के अन्दर ही २०० वर्ग फोट क्षेत्र वाले एक अन्य टीले को रनिवास कहते थे । इसमें कमलावती रानी रहती थी। १८६५ में इसका उत्खनन करवाते समय कनिंघम को एक बौद्ध विहार एवं बौद्ध मन्दिर के भग्नावशेष दृष्टिगोचर हुए थे। उसमें उन्हें बुद्ध को विशाल मूर्ति भी प्राप्त हुई थी। वे दूसरी बार १८८० में केसरिया गये तो वह मूर्ति उन्हें दृष्टिगोचर नहीं हो पायो थी।
ह्वेनसांग के यात्रा-विवरण में केसरिया से सम्बन्धित बुद्ध के पूर्व जन्म का रोचक प्रसंग आता है । जातक कथा ४ के अनुसार बुद्ध, पूर्व जन्म में केसरिया के प्रसिद्ध राजा थे, संसार में इनका एकछत्र राज्य था । बोधिसत्व केसरिया में मानव तथा देवताओं की संगोष्ठियों में निरन्तर उपदेश दिया करते थे। इनके पास ६ कोषागार थे। वृद्धावस्था प्राप्त होने पर शरीर की नश्वरता का आभास एवं आत्मप्रकाश होने पर राजगद्दी के साथ देश को भी त्याग कर वे संन्यासी हो गये थे। फाहियान के यात्रा
१. ब्लूच, टी०, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया एनुअल रिपोट १९०२,.
१०६ एवं एंश्येण्ट ज्योग्राफी आव इण्डिया, पृ० ३७६ । २. कनिंघम, ए, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव ण्डिया रिपोर्ट पृ० ६४-६७ । ३. पाटिल, डी० आर०, कुशीनगर, आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया:
पृ ३१, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण १९५७ ।
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