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पावा मार्ग अनुसंधान : १५१ ध्यान में रखते हुए सम्राट अशोक ने गण्डक की पूर्व दिशा में वैशाली और उत्तर-पश्चिम की दिशा में लौरिया नन्दनगढ़ की ओर स्थापित करवाये थे।
सम्राट अशोक द्वारा स्थापित इन स्तम्भों के स्थानों से ही नहीं अपितु इन स्तम्भों में प्रयुक्त विशिष्ट प्रस्तरों से भी तत्कालीन मार्ग पर प्रकाश पड़ता है।
अशोक के स्तम्भों के प्रस्तर चुनार के प्रसिद्ध खदान से लाये गये थे। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि चुनार से इतने विशाल पत्थरों को किस प्रकार भारत के विभिन्न स्थलों पर ले जाया गया होगा। मोहम्मद हामिदकुरेशीकृत “सरिते ए फीरोज शाहो' में फीरोजशाह तुगलक" के शासनकाल में अम्बाला के निकट टोपरा तथा मेरठ से दो अशोक-स्तम्भ दिल्ली लाने का वर्णन है। ये स्थान क्रमशः सौ तथा पचास मील की दूरी पर स्थित हैं। इन स्तम्भों के दिल्ली लाने की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है
इन स्तम्भों को स्थानान्तरित करने के लिए इनकी लम्बाई के अनुपात के बल्ले वाले पहियेदार वाहन ( लाढ़ा ) का निर्माण किया गया, जिस पर कुशलता से ये रखे गये। लाढ़ा में दोनों तरफ दस-दस लोहे के बड़े-बड़े छल्ले लगे हुए थे, जिसमें मोटे लम्बे रस्से बंधवाकर हाथियों के समह से इसे खींचा जा सके। चार बड़े-बड़े छल्ले लादे के पीछे भी लगे हए थे, जिसमें मोटे रस्से बांधकर पीछे से आदमियों का समूह ढलान पर लाढ़े को रोक सके तथा सम्भावित खतरे को टाला जा सके। पर्वताकार हाथियों का विशाल समूह जब लाढ़े को नहीं खींच पाया, तो असंख्य मनुष्यों द्वारा इसे खिंचवाकर नदी के तट पर लाया गया, जहाँ इन्हें ले जाने लिए विशेष प्रकार की नाव निर्मित थी। उक्त पुस्तक से अशोक स्तम्भ को नाव पर चढ़ाने के समय नाव के तरफ वाले लाढ़े के पहियों को निकालकर रस्से और पुली की सहायता से उस पर रखने का वर्णन प्राप्त होता है। इस प्रकार अशोक स्तम्भों को नदी द्वारा फिरोजाबाद के किले के निकट वाले घाट पर लाया गया।
१. पेग, जे० ए०, मेमायर्स आन कोटला फीरोजशाह दिल्ली, आकियोलाजिकल
सर्वे आव इण्डिया, सं० ५२, पृ० २३० २. वही पृ० २३०
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