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१५२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
इससे सहज ही कल्पना की जा सकती है कि गण्डक के किनारे-किनारे कोल्हुआ, लौरिया अरेराज, लौरिया नन्दनगढ़ इत्यादि के अशोक स्तम्भों को चुनार के खदानों से गंगा नदी के द्वारा पाटलिपुत्र ले जाया गया होगा । पाटलिपुत्र के निकट से बूढ़ी गण्डक द्वारा गन्तव्य स्थानों पर इसो प्रकार ले जाया गया होगा ।
वैशाली और लौरिया नन्दनगढ़ के मध्य निम्न स्थलों पर तीन अशोक स्तम्भ आधुनिक काल में भी विद्यमान हैं :
१ - वैशाली के निकट कोल्हुआ ग्राम
२- लौरिया अरेराज
३ - लौरिया नन्दनगढ़
इन स्थानों का परिचय इस प्रकार हैं
कोल्हुआ:
भौगोलिक दृष्टि से कोल्हुआ २५ ५८° अक्षांश एवं ८५°७ देशान्तर पर वैशाली जनपद के विशालगढ़ से २ मील उत्तर-पश्चिम बखरा के समीप स्थित है । बुद्धकाल में कोल्हुआ वैशाली का अभिन्न अंग रहा है । इसका प्राचीन नाम कूटागार था । कूटागारशाला महावन के अन्तर्गत स्थित थी, जहाँ बुद्ध अनेक बार विश्राम किये थे । बौद्ध साहित्य से स्पष्ट है कि कूटागार के दूसरे खण्ड पर महापरिनिर्वाण पूर्व बोधिसत्व ने अपने शिष्यों को अन्तिम उपदेश दिया था । कोल्हुआ स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अनुपम चमकीले बलुए पत्थर से निर्मित लगभग ७ मीटर ऊँचा है । इसके शीर्ष पर वर्गाकार प्रस्तर पर स्वाभाविक मुद्रा में उत्तराभिमुख सिंह की एक आकर्षक प्रतिमा स्थापित है । सिंह पिछले पैरों को समेटे हुए आगे के पैरों पर खड़ा है । इसका मुख आधा खुला हुआ तथा जिह्वा बाहर निकली हुई है । वर्गाकार प्रस्तर के ठीक नीचे घण्टी सदृश कमल निर्मित है । इस पर कोई अभिलेख अंकित नहीं है लेकिन इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिये कि सम्राट अशोक की राजाज्ञाओं एवं धर्मोपदेशों को लिखवाने के उद्देश्य से यह स्तम्भ स्थापित किया गया होगा ।
कोल्हुआ के अशोक स्तम्भ का अनेक विद्वानों ने समय-समय पर सर्वेक्षण किया है जिसका उल्लेख विभिन्न पत्रिकाओं एवं सूचियों में प्राप्त होता है । कोल्हुआ के अशोक स्तम्भ का उल्लेख जर्नल आफ एशियाटिक
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