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पावा मार्ग अनुसंधान
बौद्ध धर्म के उन्नायकों में मौर्यवंशीय सम्राट चन्द्रगुप्त के पौत्र सम्राट अशोक ( २५३ ई० पूर्व- २३२ ई० पूर्व ) का नाम सदैव आदर के साथ लिया जायेगा । कलिंग युद्ध में हुए भीषण रक्तपात को देखकर हिंसा से विरक्त प्रियदर्शी अशोक ने घोषणा की 'भेरीघोषो अहो धम्मघोषो' अर्थात् रणघोष अब धर्मघोष हो और वे बौद्धधर्म के कट्टर अनुयायी हो गये । इनके द्वारा स्थापित शिलालेख एवं स्तम्भ लेख बुद्धकालीन इतिहास एवं मौर्यकालीन संस्कृति तथा कला के सजीव प्रमाण हैं । इन्होंने सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न मार्गों पर शिला स्तम्भ स्थापित करवाये थे । ये स्तम्भ बुद्ध के उपदेशों के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ राजाज्ञा एवं मार्गनिर्देशन का कार्य करते थे ।
इन्हीं प्राचीन स्तम्भों के आधार पर कनिंघम' और कार्लाइले ने प्राचीन राजमार्गों का निर्धारण किया है । कर्निघम ने तो केवल इन मार्गों का संकेत ही किया है परन्तु कार्लाइल ने अशोक स्तम्भों के आधार पर दो मुख्य राजमार्गों का विस्तार से विवरण दिया है- एक पाटलिपुत्र ( पटना ) से कौशाम्बी ( इलाहाबाद होकर पटना से रमपुरवा राजमार्ग ) । उनके मत में अशोक ने मुख्य राजमार्गों के मुख्य नगरों व धार्मिक स्थलों पर ही इन स्तम्भों का निर्माण करवाया था, जिससे उस मार्ग से जाने वाले तीर्थयात्री व सामान्य यात्री उन स्तम्भों पर लिखे हुए धर्मोपदेशों को पढ़ें तथा उनसे मार्ग-निर्देशन प्राप्त करें । कार्लाइल ने अपनी रिपोर्ट में पाटलिपुत्र से नेपाल के पुराने दूसरे राजमार्ग का विवरण देते हुये लिखा है कि गंगा के उस पार वैशाली से रमपुरवा के बीच चार अशोक स्तम्भ आज भी दृष्टिगोचर होते हैं । गण्डक से निश्चित दूरी को
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१. कनिंघम, ए०, एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ३७६, ३७८ २. कार्लाइल, ए० सी० - आर्कियोलाजिकल सर्वे आव इण्डिया रिपोर्ट ११, गोरखपुर, सारण, गाजीपुर, पृ० ५५
३. ही - पृ० ५४
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