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________________ १४८ : महावीर निर्वाणभूमि पात्रा : एक विमर्श की राजगृह-कुशीनगर यात्रा से राजगृह-कुशीनगर मार्ग का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । इन यात्रा-विवरणों से यह तथ्य सामने आता है कि बुद्धकाल में राजगृह और श्रावस्ती के बीच एक सुव्यवस्थित राजमार्ग अवश्य था । अतः पावा-कुशीनगर मार्ग के सन्दर्भ में कार्लाइल' का यह तर्क तथ्य से परे प्रतीत होता है कि बुद्धकाल में कोई समुचित मार्ग नहीं था । मार्ग में नदी, नाले, दलदल भूमियाँ इत्यादि थीं। सम्भवतः इनके तर्क से प्रभावित होकर ही डॉ. राजबली पाण्डेय ने कुशीनगर-पडरौना के मार्ग का उल्लेख न कर राही दूरी ( सीधी दूरी नहीं ) की बात को है । उनका कथन है कि राही दूरी बौद्ध ग्रन्थों द्वारा बतायी गयी दूरी से अधिक है। परन्तु अधिकांश विद्वानों ने इस सुव्यवस्थित मार्ग की पुष्टि की है । टनर' ने कुशीनगर से पावा की दूरी १२ मील बतायी है । कनिंघम ने भी हेनसांग की यात्रा का क्रमिक विवरण मानचित्र के साथ प्रस्तुत किया है । गंगा क्षेत्र के मानचित्र में स्पष्ट है कि ह्वेनसांग ने कुशीनगर से पावा ( पड़रौना) की यात्रा की थी। इस प्रकार हनसांग के काल (७ वीं शताब्दी) में भी कुशीनगर से पड़रौना का मार्ग विद्यमान रहा है। मललसेकर' के अनुसार भी बौद्ध साहित्य में पावा से कुशीनगर के मार्ग का अनेक बार वर्णन आता है। इस प्रकार पावा-कुशीनगर मार्ग के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि बुद्धकाल में कुशीनगर-पावा मार्ग वैशाली से श्रावस्ती तक जाने वाले मुख्य राजमार्ग के अन्तर्गत आता था। तत्कालोन राजमार्ग योजनाबद्ध ढंग से देश के प्रसिद्ध नगरों को जोड़ते थे। दक्षिण पूर्व से उत्तर-पश्चिम का महापथ राजगृह से श्रावस्ती को जोड़ता "तेन खापेन समयेन आपस्मा महाकस्सणो पवाय कुसिनारं अद्धान भग्गप्पटि पन्नोहोति महत्ता भिक्खु सड़घेन सद्धि पन्चमत्तेहि भिक्खु सतेद्दि ।" १. कार्लाइल, ए० सी० एल, आकियोलाजिकल सर्वे ऑव इण्डिया रिपोर्ट ११, गोरखपुर, सारण, गाजीपुर, पृ० ३०, ४०६ २. डॉ. पाण्डेय, राजबली; गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का इतिहास, पृ० ७८ ३. टर्नर, जी०, नोट फाम बुद्धघोष, जनरल ऑव द एशियाटिक सोसायटी ऑव बगाल, खण्ड ८, पृ० १००५, जे० थामस बैपिस्ट मिशन प्रेस कलकत्ता, १८३८ ४. कनिंघम, ए०, ऐश्येण्ट ज्याग्रफी ऑव इण्डिया, पृ० ४७७ ५. मललसेकर, जी० पी०, डिक्शनरी ऑव पालि प्रापर नेम्स, १० १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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