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बुद्धकालीन मार्ग : १४५
श्रावस्ती जाकर बद्ध का दर्शन न पाकर शिष्यगण राजगह के पाषाण चैत्य पहुंचे, जहाँ पर वे विहार कर रहे थे। यहाँ बावरि के शिष्यों की अलक से राजगह-यात्रा का वर्णन प्राप्त होता है जिसके अनुसार बावरि-शिष्य दक्षिण में अलक से चलकर पतिठान, महिस्सति (महेश्वर), महिष्मती, उज्जैनी, गोनद्ध ( विदिसा के निकट ), वेदिसं (विदिसा), वनसाध्य या वनसब्ध्य ( गोना जनपद में तुमैन ), कोसम्बी ( कौशाम्बी ), साकेत और सावत्थि ( श्रावस्ती ) मार्ग का अनुगमन किये थे। शिष्यगण श्रावस्ती से राजगृह जाते समय श्रावस्ती सेतव्या, कपिलवस्तु, कुशीनगर, पावा, भोगनगर, वैशाली और मागधपुर ( राजगृह ) के विश्राम स्थलों ( पड़ावों) पर ठहरते हुए रमणीय पाषाण चैत्य में पहुंचे।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि बुद्धकालीन भारत के दो प्रमुख मार्ग रहे हैं-श्रावस्ती-प्रतिष्ठान एवं श्रावस्ती-राजगृह । इन मार्गों के मध्य पड़ने वाले भौगोलिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नगरों तथा निगमों के सम्बन्ध में भी सूचनाएं प्राप्त होती हैं ।
'महापरिनिव्वाणसुत्त'२ राजगृह-कुशीनगर मार्ग के विषय में विस्तृत सूचनायें देता है साथ ही महापरिनिर्वाण के पूर्व बुद्ध ने वैशाली से कुशोनगर जाते हुए जिन नगरों एवं गाँवों में विहार किया था, उसका क्रमबद्ध अभिज्ञान प्रदान करता है। इसके अनुसार वैशाली से चलकर सर्वप्रथम वे भण्डगाम में विश्राम किये । अंगुत्तर निकाय के अनुसार यह गाँव वज्जि जनपद में था । भण्डगाम की स्थिति वैशाली और हत्थिगाम के मध्य थी। हत्थिगाम भी वज्जि जनपद में था। संयुक्तनिकायवज्जिसुत्त में इसे वज्जियों का ग्राम बताया गया है। महापरिनिर्वाणसुत्त के अनुसार “भण्डगाम और अम्बगाम के बीच हत्थिगाम स्थित था।""हत्थिगाम से चलकर महात्मा
१. सेतव्यं कपिलवत्थु कुसीनारं च मंदिरं ।
पावं च भोगनगरं वेसालिं मगधपुरं, पासाणक चेतियं च रमणीयं मनोरमं ।।
___ सुत्तनिपात, परायणवग्ग, पद १०११, १०१५, पृ० ४३२ २. दीघ निकाय, महापरिनिव्वाणसुत्त, २/३, पृ० १२२, १४० ३. अंगुत्तरनिकाय ( मूल ), खं० २, पृ० १ ४. संयुत्तनिकाय (हि.), खं० २, पृ० ४९७ ५. बीघनिकाय, महापरिनिव्वाणसुत्त ( हि० ), पृ० १३५
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