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१४४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
कथा' के अनुसार श्रावस्ती का प्रसिद्ध व्यापारी अनाथपिण्डिक व्यापारिकः प्रयोजन से ५०० गाड़ियाँ लेकर राजगृह गया था । इसी यात्रा में उसने प्रथम बार गौतम बुद्ध का दर्शन किया था । धम्मपद अट्ठकथा' में उल्लिखित है कि वाराणसी का एक व्यापारा लाल वस्त्रों से लदी हुई गाड़ियो के साथ श्रावस्ती जाने के लिए निकला, किन्तु मार्ग में नदी पार न कर सकने के कारण तट पर ही सामान बेचने के लिए विवश हुआ था ।
सुत्तनिपात के परायणवग्ग * ( बावरि के शिष्यों के यात्रा-वर्णन का प्रसंग ) में पावा को उत्तर भारत में श्रावस्ती - कुशीनगर, वैशाली के प्रमुख व्यापारिक मार्ग पर स्थित बताया गया है। राजगृह - श्रावस्ती तक का मार्ग प्रमुख राजमार्ग था, जिस पर अम्बलट्टिका, नालन्दा, पाटलिग्राम ( पाटलिपुत्र ), कोटिग्राम नादिक या नादिका, वैशाली, भण्डगाम, हत्थिगाम, अम्बगाम, जम्बुगाम, भोगनगर पावा, कुशीनगर, पिप्पलीवन, रामगाम, कपिलवस्तु, सेतव्या इत्यादि नगर स्थित थे । इस मार्ग पर बुद्धकृत चर्चा का विस्तृत विवरण बौद्ध साहित्य से प्राप्त होता है । कोसल जनपदान्तर्गत एक सुविख्यात नगर एवं व्यापारिक केन्द्र होने के कारण श्रावस्तो, उत्तरापथ तथा दक्षिणापथ से जुड़ा हुआ था ।
परायणवग्ग में प्राप्त बावरि ब्राह्मण के शिष्यों की यात्रा का वृत्तान्त इस प्रकार है - श्रावस्ती में उत्पन्न बावरि, मन्त्र - पारंगत होकर दक्षिण पथ पर जाकर गोदावरी के तट पर अलक नामक स्थान के निकट निवास करने लगा था । कपिलवस्तु त्यागने के पश्चात्, शाक्यपुत्र के परम ज्ञान प्राप्त करने की सूचना बावरि को मिली । बावरि ने अपने सोलह शिष्यों को श्रावस्ती जाकर उनके ज्ञान की परीक्षा करने का आदेश दिया ।
१. जातक अट्ठकथा ( हि० ), सं० भिक्षुघमंरक्षित, प्र० ख० पृ० ११९
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२. धम्मपद अट्ठकथा, सं० डॉ० टाटिया, नथमल, खं ० ३, पृ० ४११ ३. सुत्तनिपात परायणवग्ग ( हि०), पद १०११-१०१५, पृ० ४३२ ४. वावरिं, अभिवादेत्वा कत्वा चं नं पदक्खिणं ।
जटाजिनधरा सब्बे पक्कामुं उत्तरामुखा ॥ अलकस्स पतिट्ठानं पुरिमं महिस्सति तदा । उज्जेनि वापि गोनद्धं वेदिसं वन सन्ध्यं । कोसम्बि चापि साकेतं सार्वत्थि च पुरूत्तमं ।
सुत्तनिपात, परायणवग्ग ( हि०), पद १०११, १०१५, पृ० ४३२
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