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बुद्धकालीन मार्ग
बौद्ध साहित्य में बुद्धकालीन राजमार्गों के विषय में विस्तृत विवरण उपलब्ध है । राजमार्गों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि प्राचीन वैशाली कुशीनगर मार्ग की स्थिति के विषय में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । इसके निर्णय हेतु मध्यदेशान्तर्गत आने वाले बुद्धकालीन मुख्य मार्गों का विवेचन एवं विश्लेषण अति आवश्यक है ।
मार्ग सम्बन्धी विवरणों पर दृष्टिपात् करने से ज्ञात होता है कि बौद्ध साहित्य में मार्गों का वर्णन मुख्यतया बुद्ध की चर्या और व्यापारिक यात्राओं के क्रम में हुआ है । इस क्रम में हम कुछ व्यापारिक मार्गों का उल्लेख करने के पश्चात् बुद्ध-सम्बद्ध मार्गों का विवेचन करेंगे ।
बुद्धकालीन अट्टकथा धम्मपद' में वैशाली और मगध के राजमार्ग का वर्णन प्राप्त होता है। श्रेष्ठ व्यक्तियों एवं महापुरुषों के आवागमन हेतु मार्गों का जीर्णोद्धार हुआ करता था । मगधराज विम्बसार को जब ज्ञात हुआ कि बुद्ध 'वैशाली से मगध के लिए प्रस्थान करने वाले हैं तो उन्होंने बुद्ध से निवेदन किया कि मार्गों के जीर्णोद्धार पूर्ण होने तक, यात्रा के कार्यक्रम को स्थगित करने की कृपा करें । राजगृह से ५ योजन लम्बा मागं चौरस कर दिया गया। गंगा के उस पार वज्जियों ने भी वैसी ही व्यवस्था की, तत्पश्चात् बुद्ध ने राजगृह यात्रा आरम्भ की ।
बुद्धकालीन मार्गों एवं उनसे यात्रा करने वाले व्यापारियों के सम्बन्ध में विभिन्न उल्लेख प्राप्त होते हैं । महापरिनिव्वाणसुत्तर से पुक्कस मल्ल द्वारा ५०० गाड़ियों के साथ कुशीनगर से पावा की यात्रा करने का विवरण प्राप्त होता है । बुद्ध के अनुसार सुनापरान्त जनपद ( गुजरात के ठाणा और सूरत के जिलों का अंश ), के दो व्यापारी भाई पाँच-पाँच सौ गाड़ियाँ लेकर व्यापारार्थ श्रावस्ती गये । जातकटुकथा की निदान -
१. धम्मपद अट्ठकथा, सं० डॉ० टाटिया, नथमल, खण्ड ३, पृ० १७० पटना, १९७६
२. दोघनिकाय ( हि० ) महापरिनिव्वाणसुत, २ / ३, पृ० १३८- १३९ ३. बुद्धचर्या ( हि०) ५० ३७६
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