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१४२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श था । यह विजय यात्रा “गोमूत्रिका" गति से पूर्व दिशा में बढ़ती हुई कभी उत्तर तो कभी दक्षिण की ओर के जनपदों और राजाओं पर दो तरफा मार करती हुई चलती थी। जिसका विवरण महाभारत के सभापर्व में इस प्रकार मिलता है-"वहाँ से आगे जाकर भरतवंश शिरोमणि शूरवीर भीम ने गण्डक नदी के तटवर्ती और विदेह "मिथिला" देश को अल्प समय में जीतकर, दशार्ण देश को भी अधिकार में ले लिया।" इस प्रकार स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि महाभारत में, इस क्षेत्र में निर्मित मार्ग तथा गण्डक से इसकी भौगोलिक स्थिति एवं उनके पारस्परिक सम्बन्ध आदि के विषय में कई बार उल्लेख हुआ है।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि आवश्यकतानुसार मार्गों के निर्माण एवं उनके विकास का इतिहास रोचक है। समयचक्र के अनुसार, इसका स्वरूप भले ही बदलता रहे, लेकिन मूलतः वह किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाये रखता है इसके प्रमाण आदिकाल, रामायण काल एवं महाभारत काल के उपयुक्त विवरण हैं।
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