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१४० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श से होकर जाता था । साकेत और बाल्मीकि आश्रम के बीच के मार्ग को यहीं से होकर जाने की अधिक सम्भावना है। अतः यह स्वीकार किया जा सकता है कि निर्वासित सीता, लक्ष्मण के साथ रथ पर इसी मार्ग से गयी थी।
महाभारत में इस मार्ग एवं सदानीरा ( गण्डक ) का प्रायः उल्लेख आता है। कृष्ण, जरासन्ध वध के निमित्त, भीम और अर्जुन को लेकर तपस्वियों के वेष में, हिमालय की तराई से होकर, जनकपुर में कुछ समय विश्राम कर, राजगह गये। मार्ग में सरय, राप्ती, सदानीरा (गण्डकी) इत्यादि नदियों को पार किया। वे तीनों कुरुक्षेत्र प्रदेश से प्रस्थान कर, कुरु जंगल के मध्य होते हुए रमणीय पद्म सरोवर पहुँचे। फिर कालकूट पर्वत को पार कर गण्डक, महाशोण, सदानीरा एवं एक पर्वत प्रदेश की सब नदियों को क्रमशः पार करते हुए आगे बढ़ते गये। इससे पूर्व उन्होंने रमणीसरयू नदी पार कर, पूर्वी कोशल प्रदेश में भी पदार्पण किया था। कोशल पारकर, बहत सी नदियों का अवलोकन करते हए वे मिथिला गये। गंगा और सोनभद्र को पार करके वे तीनों अच्युत वीर, पूर्वाभिमुख होकर चलने लगे। कुश और चीर से उन्होंने अपने शरीर को ढक रखा था इस प्रकार चलते-चलते वे मगध क्षेत्र की सीमा के अन्दर पहुँच गये।
मोतीचन्द्र ने महाभारतकालीन मार्गों का बहुत विस्तार से वर्णन किया है एवं इस तथ्य की पुष्टि की है कि कुरुक्षेत्र से राजगृह मार्ग रामगंगा पार करके साकेत और उत्तर जाते हुए श्रावस्ती से होकर कपिलवस्तु पहुँचा था, वहाँ से दक्षिण-पूर्व की दिशा पकड़कर, कुशीनगर और १. कुरुभ्यः प्रस्थितास्ते तु मध्येन कुरुजाड्गलम् ।
रम्यं पद्मसरोगत्वा कालकूटमतीत्य च ॥२६॥ गण्डकी च महाशोणं सदानीरां तथैव च। एकपर्वतके नद्यः क्रमेणत्या वजन्तते ॥२७॥ उत्तीयं सरयू रम्यां दृष्ट्वा पूर्वाश्च कोसलान् । अतीत्य जग्मुमिथिलां पश्यन्तो विपुला नदीः ।।२८।। अतीत्य गङ्गां शोणं च त्रयस्ते प्राङ्मुखास्तदा । कुशचीरच्छदा जग्मुर्मागधं क्षेत्रमच्युताः ।।२९।। महाभारत, सभापर्व, जरासन्धवध, २०/२६-२९, पृ० ७२३-२४, गोता प्रेस गोरखपुर।
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