SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राग्बुद्धकालीन मार्ग : १३९. मिथिला तक मार्ग के निर्माण का ज्ञान प्राप्त होता है। इस प्रकार इस मार्ग का इतिहास विचित्र है । किसी भी नगर की स्थापना और उसके विकास में वहाँ के नागरिकों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग, सुरक्षा का दृष्टिकोण, कृषि, व्यवसाय एवं उद्योग की प्रगति तथा उसकी नदी के निकट की स्थिति, समुद्री-बन्दरगाह इत्यादि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राचीन काल में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए आवागमन के सीमित साधन होने के कारण, दिन भर में आसानी से जितनी दूरी तय की जा सकती थी, उसी स्थान पर अपनी सुविधा के अनुरूप पड़ाव डाला जाता था । नगरों के विकास में इन पड़ावों को मुख्य भूमिका होती थी। प्राचीन राजधानियों को जोड़ना, प्राचीन राजपथों की प्रमुख विशेषता रही है। राजधानी बदल जाने पर मार्ग भी बदल जाते थे । राजधानियों के बदलने का मुख्य कारण जलवायु, व्यापार, राजनीति, धर्म, नदियों के धारापरिवर्तन अथवा राजाओं की स्वेच्छा होती थी। किंवदन्ती है कि रामायण काल में महाराज दशरथ जनकपुर जाते समय, गण्डक के किनारे रामघाट पर बारात के साथ विश्राम किये थे। यह स्थल अयोध्या और जनकपुर के मध्य राजमार्ग पर स्थित था। जनकपुर से अयोध्या की दूरी, राज्यमार्ग की चौड़ाई आदि को सूचना "बाल्मीकि रामायण"१ से प्राप्त होती है। धनुषभंग होने पर जनक का सन्देश लेकर दशरथ के पास अयोध्या पहुंचने में रथारूढ उनके मन्त्री ( दूत) को रास्ते में तीन रात्रि विश्राम करना पड़ा था। उपयुक्त तथ्यों से स्पष्ट हैं कि रामायण काल से अयोध्या एवं जनकपुर के बीच मार्ग विद्यमान था और मार्ग में सदानीरा ( गण्डक ) नदी को पार करना पड़ता था। रामप्रसाद पाण्डेय के अनुसार, किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि प्राचीन काल में अयोध्या और जनकपुर के बीच का मार्ग, पड़रौना १. जनकेन समादिष्टा दूतास्ते क्लान्तवा हनाः। त्रिरात्रमुषिता मार्गे तेऽयोध्या प्राविशन् पुरीम ॥१॥ अष्टषष्टितमः सर्गः, वाल्मीकि रामायण, पृ० १६१ २. पाण्डेय, रामप्रसाद, गोरखपुर जिले का इतिहास, पृ० ३४, नागरी प्रेस, दारागंज, प्रयाग, १९४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy