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________________ १३८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श तथा उससे सम्बन्धित 'शतपथ-ब्राह्मण' के काल तक तो आर्य सभ्यता निश्चित ही बिहार तक पहुँच चुकी थी। कोसल, काशी और मिथिला के राज्य स्थापित हो चुके थे। माधव विदेह वैदिक अग्नि को सदानीरा तट से आगे ले जा चुके थे। मिथिला में वैदिक यज्ञ-याग होने लग गये थे।"१ इसी तथ्य का उल्लेख करते हुए एल० एस० एम० ओमार्ले ने लिखा है कि अग्नि के साथ विदेह, सरस्वती के किनारे-किनारे चलकर गण्डक की चौड़ी धारा के तट पर पहुंचे, जहाँ अग्नि ने उन्हें सूचित किया कि उनका निवास स्थान गण्डक के पूर्वी तट पर है। वहाँ जाकर उन्होंने जंगलों को साफ किया तथा भूमि का कर्षण कर कृषि उत्पादन में वृद्धि की और वहाँ एक विशाल शक्तिशाली राज्य को स्थापना की, जिसके शासक राजा जनक ही रहे। इनके शासन काल में मिथिला भारतवर्ष का बहत हो महत्त्वपूर्ण एवं सुसंस्कृत-सभ्य राज्य रहा ।"२ मथुराप्रसाद दीक्षित ने वैशाली की स्थापना के विषय में लिखा है 'शतपथ ब्राह्मण' (१/४/१०/१९ ) के अनुसार सरस्वती के तट पर विदेह (मिथि ) नामक राजा था, जिसका पुरोहित गौतम राहुगण था। ये दोनों अग्नि वैश्वानर का अनुसरण करते हुए सदानीरा नदी के तट तक पहुँचे। अग्नि वहाँ रुक गई तथा राजा विदेह (मिथि) सदानीरा के उस पार अर्थात् पूर्वी तट पर रहने लगे। उसी समय से उस देश का नाम विदेह अथवा मिथिला पड़ा। कालान्तर में विदेह दो भागों में विभक्त हो गया एक पूर्व विदेह तथा दूसरा पश्चिम विदेह । पश्चिम विदेह को लोग वैशालो भो कहते हैं।" मोतीचन्द्र के अनुसार 'सरस्वती और सदानीरा' के मध्य भूभाग में शतपथ-ब्राह्मण काल तक आर्यों की बस्तियाँ एवं नगर की स्थापना नहीं हुई थी, मार्ग भी नहीं बने हुए थे। ऐसी सम्भावना प्रतीत होती है कि विदेह माधव ने जंगलों के मध्य वृक्षों को काटकर और जलाकर जो मार्ग बनाया था, वही मार्ग सरस्वती से सदानीरा होकर, श्रावस्ती होते हुए वैशाली तक जाता था।"४ उपयुक्त वर्णन से सरस्वती के तट से १. भारत का सांस्कृतिक तीर्थ ( लेख), वै० अ० ग्र०, पृ० ३९३ २. हिस्ट्री एण्ड आर्कियोलाजी ऑफ वैशालो ( लेख ), वै० अ० प्र०, पृ० ४३४.४३५ ३. वैदिक काल में वैशाली, वैशाली अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० २७० ४. मोतीचन्द्र सार्थवाह, पृ० १०, २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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