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प्राग्बुद्धकालीन मार्ग : १३७ फहराते हुए, अपने पुरोहित गौतम राहुगण तथा वैदिक धर्म के प्रतीक, अग्नि के साथ, विदेह माधव आगे चल पड़े। नदियों को सुखाते एवं वनों को जलाते हुए वे तीनों सदानीरा ( आधुनिक गण्डक ) के किनारे पहुँचे । इस प्रकार शतपथ ब्राह्मण काल से पूर्व उस नदी के पार, वैदिक संस्कृति नहीं पहुँचा थी तथा सदानीरा नदी के पूर्व का भाग जंगली तथा कृषि - "विहीन था । "
विदेह माधव के सदानीरा के पूरब पहुँचने के पश्चात् अन्य ब्राह्मण भी वहाँ पहुँचे, उन्होंने यज्ञों द्वारा अग्नि प्रज्वलित कर कृषि करना आरम्भ कर दिया । शतपथ ब्राह्मणकार लिखते हैं कि आज भी यह नदी विदेह तथा कोशल राज्यों के बीच सीमा रेखा का कार्य करती है । महाकाव्य एवं पौराणिक सूचियों में द्वितीय स्थान के राजा मिथि विदेह का नाम माधव विदेह की याद दिलाता है । रामायण के अनुसार मिथिला के राजवंश की स्थापना निमि नामक राजा ने की थी । यद्यपि परवर्ती वैदिक साहित्य में विदेह की राजधानी मिथिला का उल्लेख नहीं मिलता है, परन्तु जातकों में इसका उल्लेख बार-बार किया गया है । निमि के पुत्र का नाम मिथि था तथा मिथि के पुत्र जनक, प्रथम रहे हैं । जनक व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है, इससे जनकवंश का बोध होता है ।
" धृतेस्तु बहुलापूवो भूद् बहुलाश्व - सुतः कृतिः । तस्मिन संतिष्ठते वंशो जनकानां महात्मनाम् ॥”
उत्तर वैदिक साहित्य में स्पष्ट है कि, मिथिला के राजवंश को जनक - वंश कहा गया है, उनमें अनेकों ने 'जनक' नाम धारण किया था, इस प्रकार जनकवंश आरम्भ होता है ।
सम्पूर्णानन्द ने भी इसका समर्थन करते हुए लिखा है 'शुक्लयजुर्वेद'
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१. वायुपुराण, खेमराजजी, कृष्णदास, बम्बई, १८१० ई०, ८९, २३ २. " राजाभूत्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः स्वेन कर्मणा ।
निमिः परमधर्मात्मा सर्वसत्ववतां वरः ॥ ३ ॥ तस्य पुत्रो मिथिर्नाम जनको मिथिपुत्रकः । प्रथमो जनको राजा जनकादप्युदावसुः ॥ ४ ॥ "
वाल्मीकि रामायण, प्र० खं०, सर्ग ७१ / ३ - ४, गीता प्रेस, गोरखपुर द्वि० सं०, १९४७
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