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पावा-पड़रौना अनुशीलन : १३३ वे उस स्थल को निर्देशित नहीं कर पाते हैं, जहाँ पर बुद्ध ने गण्डक पार किया था। कन्हैयालाल सरावगी' की दष्टि में बुद्ध को वैशाली के निकट गण्डक पार कराने में सुविधा होती है । वास्तविकता यह है कि फाजिलनगर-सठियाँव से गण्डक का न ता पहले ही कोई सम्बन्ध था और न अब भी है।
कार्लाइल के मत का समर्थन राजबली पाण्डेय ने किया है। उनका कथन है कि कार्लाइल के पूर्व कनिंघम ने वर्तमान पडरौना को पावापुरी के रूप में मान्यता प्रदान की था, किन्तु इस मत के विरोध में दो मुख्य आपत्तियाँ हैं । प्रथम आपत्ति है कि यह वैशाली एवं कुशीनगर मार्ग पर स्थित नहीं है। यह असम्भव प्रतीत होता है कि महात्मा बुद्ध एव उनके शिष्य कश्यप वैशाली तथा राजगृह से कुशीनगर जाने के लिए १३-१४ मील, उत्तर-पूर्व पड़रौना की यात्रा कर फिर कुशीनगर आये होंगे। द्वितीय आपत्ति यह है कि कुशीनगर से पड़रौना की मार्ग से दूरी ( सीधी दूरी नहीं ) बौद्ध ग्रन्थों में वर्णित दूरो से अधिक है। इन आपत्तियों पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि कुशीनगर से पड़रौना के उपनगर छावनी के प्राचीन टीले की दूरी राजमार्गों द्वारा ठीक १२ मील है । कार्लाइल जहाँ एक तरफ कुशीनगर से सठियाँव-फाजिलनगर की दूरी १० मील स्वीकार करते हैं, उसे वक्राकार पगडण्डी द्वारा १२ मोल तक खींचकर ले जाते हैं । वहीं दूसरी तरफ़ आधुनिक मार्ग द्वारा कुशीनगर पड़रौना की दूरी १३ मील स्वीकार करते हैं । यह ज्ञात नहीं होता है कि वे किस आधार पर कुशीनगर-पड़रौना मार्ग की दूरी १४ मील मानते हैं। यह तो निर्विवाद है कि आधुनिक युग में निर्मित कुशीनगर (माइल स्टोन) से कसया की दूरी १ मील तथा कसया-चौराहे ( माइल स्टोन) से पड़रौना, डाक बंगला ( माइल स्टोन ) की दूरी १२ मील है। पड़रौना डाक बंगले में छावनी स्थित प्राचीन टीले को दुरी १ मील है। इस प्रकार मार्ग द्वारा पड़रौना के प्राचीन टीले से कुशीनगर की दूरी १२ मील निश्चित ही है, जिसे कोई भी नाप सकता है । अतः कार्लाइल द्वारा प्रतिपादित कुशीनगर-पड़रौना मार्ग की दूरी ७ कोस या १४ मील तकसंगत प्रतीत नहीं होती है । वास्तविकता तो यह है कि पड़रौना से कुशीनगर
१. सरावगी, कन्हैयालाल पावा समीक्षा पृ० २१, ४३ २. डॉ० पाण्डेय, राजबली गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का
इतिहास पृ० ७७।
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