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१३२ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श कुशीनगर से पड़रौना की दूरी यदि मार्ग द्वारा नापी जाय तो यह ७ कोस अथवा १४ मील होती है। यह भी निश्चित है कि प्राचीनकालीन यात्रा मार्गों की दूरी आज के मानचित्र पर नापी गई सीधी दूरी से कम नहीं हो सकती है। प्राचीन काल में पावा से कुशीनगर तक के मार्ग की दूरी १२ मील थी। कारण यही था कि मार्ग में नदी, नाले, दलदल भूमियाँ एवं जंगल थे। यह सर्वदा असम्भव है कि वर्तमान मानचित्र पर नापने से सीधी दूरी १३ मील हो । अतः पड़रौना को पावा के रूप में मान्यता का विरोध करने का यह उनका प्रथम कारण रहा है।
पडरौना को पावा न मानने की कार्लाइल द्वारा प्रदत्त दूसरी आपत्ति यह रही है कि पड़रौना प्राचीन वैशाली-कुशीनगर मार्ग से एकदम हटकर अधिक उत्तर की ओर स्थित है। परन्तु वैशाली या बसाढ़ से कुशीनगर मार्ग पर पावा के होने से कुशीनगर से दक्षिण-पूर्व में ही इसका होना सम्भव हो सकता है। उपर्युक्त विश्लेषण से यह प्रमाणित एवं सुनिश्चित हो जाता है कि इसी मार्ग द्वारा बुद्ध एवं उसके पश्चात् उनके प्रधान शिष्य महाकश्यप मगध या वैशाली से पावा होकर कुशीनगर आये थे। अतः यह बिल्कुल स्पष्ट है कि पावा की भौगोलिक स्थिति के लिए कुशीनगर से दक्षिण-पूर्व में कहीं इसका अवलोकन करना आवश्यक है।
कार्लाइल के अनुसार प्राचीन काल में पावा एवं कुशीनगर के मध्य टेढ़े-मेढ़े मार्ग द्वारा यात्रा की दूरी १२ मील थो, तो सम्भव है कि वास्तविक दूरी एक सीधी रेखा में नापने पर केवल १० मील हो हो सकती है। उन्होंने सिंहली साहित्य के आधार पर बताया है कि पावा, कुशीनगर से १२ मोल पर गण्डक नदी की ओर स्थित था। किन्तु वे फाजिलनगरसठियाँव को पावा के रूप में मान्यता देते समय गण्डक नदी को बिलकूल ही अनदेखा कर देते हैं। वे केवल कुशीनगर और पावा के बीच की दूरी तक ही अपने को सीमित रखते हैं, वे गण्डक के विषय में मौन रहना ही उचित समझते हैं। डॉ० राजबली पाण्डेय' गण्डक को पावा और कुशीनगर के मध्य मानते हैं । योगेन्द्र मिश्र स्वीकार करते हैं कि वैशाली से पावा जाने के लिए, बुद्ध को गण्डक नदी पार करनी पड़ी थी, किन्तु
१. डॉ० पाण्डेय, राजबली, गोरखपुर जनपद और उसकी क्षत्रिय जातियों का
इतिहास पृ० ७८ । २. मिश्र, योगेन्द्र, श्रमण भगवान महावीर की वास्तविक निर्वाण भूमि पावा
प्राचीन पावा, पृ० ३७
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