________________
१३४ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श की दूरी १३ मोल है, किन्तु पड़रौना के निकट स्थित बहुचर्चित टीले से कुशीनगर की दूरी ठीक १२ मोल हो है । ऐसी परिस्थिति में अब दूरी को विवादास्पद बनाना तर्कयुक्त नहीं है । जहाँ तक मानचित्र पर कुशीनगर से पड़रौना के दूरी का प्रश्न है, कार्लाइल मानचित्र पर सीधी रेखा खींचकर कुशीनगर-पड़रौना टीले की १२ मील की दूरी को १३ मील ले जाते हैं। यदि मानचित्र पर कुशीनगर और पड़रौना के मध्य सीधी रेखा खींची जाय तो किसी भी हालत में इसको दुरी १२ मोल से कम होगी, अधिक होने का प्रश्न ही नहीं उठता है । वास्तव में यदि मानचित्र पर कुशीनगर से पड़रौना टीले के बीच सीधी रेखा में दूरी नापी जाय तो ११ मील ही होती है।
कार्लाइल' इसकी सम्भावना व्यक्त करते हैं कि बौद्धकाल में यहाँ कोई अच्छा मार्ग नहीं था, और मार्ग में नदी, नाले, दलदल तथा जंगल पड़ते थे, इसीलिए वे किसी राजमार्ग की कल्पना नहीं पाते हैं, और वे राही दूरी की बात करते हैं । यह ध्रुव सत्य है कि वैशाली और कुशीनगर के बीच (पड़रौना) पावा होकर राजमार्ग निश्चित हो था, जिसका बौद्ध साहित्य में बार-बार उल्लेख आता है। ___ कार्लाइल ने फाजिलनगर-सठियाँव को पावा सिद्ध करने के मार्गों के सम्बन्ध में अकाट्य तर्क प्रस्तुत किया है । उनके मतानुसार पड़रौना उस प्राचीन मार्ग पर स्थित नहीं है, जो वैशाली से कुशीनगर जाता था, उसकी स्थिति प्रसिद्ध मार्ग से हटकर उत्तर, उत्तर-पूर्व दिशा में है, इस कारण पड़रौना को पावा मानने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।
कनिंघम के अनुसार वैशाली-कुशीनगर का मार्ग पड़रौना ( पावा ) होकर जाता था। कनिंघम ने कार्लाइल के रिपोर्ट ऑफ टूर्स इन गोरखपुर सारन एण्ड गाजीपुर इन १८७७-७८ तथा ८०, जिल्द ११ की प्रस्तावना में कार्लाइल की अनेक मुख्य प्राचीन स्थलों की पहचान सम्बन्धी उपलब्धियों की विशेष चर्चा करते हुए उनकी पुष्टि की है। किन्तु इसमें उन्होंने फाजिलनगर-सठियाँव को पावा के रूप में कार्लाइल द्वारा मान्यता देने के सिद्धान्त के विषय में कोई उल्लेख नहीं किया है, तथा मौन रहना ही उचित समझा है। इससे यह स्पष्ट है कि उन्होंने कार्लाइल द्वारा
१. कार्लाइल, ए० सी० आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया रिपोर्ट आव टूर्स
वाल्यूम ११, पृ. २९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org