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१३० : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
आरम्भ हुई वो भी इतने समय बाद कि महावीर के वास्तविक जन्म एवं निर्वाण स्थलों की स्मृति पूर्णतः लुप्त हो चुकी थी' ।'
यह तथ्य सर्वविदित है कि मल्लराष्ट्र बुद्धकाल के पश्चात् अल्पकाल तक ही उन्नति के शिखर पर था । तत्पश्चात् शनैः शनैः वह मगध राज्य में विलीन हो गया । कनिंघम का मत है कि बुद्धकाल में मिट्टी के स्तूप निर्मित हुआ करते थे। डी० आर० पाटिल ने इसकी पुष्टि की है । बुद्ध ने महापरिनिर्वाण से पूर्व बौद्ध धर्मावलम्बियों को निर्देश दिया था कि लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ एवं कुशीनगर तीर्थ स्थलियाँ दर्शनीय तथा संवेजनीय (वैराग्यपद ) हैं । उनके द्वारा निर्दिष्ट यात्रास्थलों में पावा नहीं था, इस कारण बौद्ध धर्म में पावा की महत्ता नगण्य रही । इतिहास साक्षी है कि किसी भी धर्म का संवर्धन राज्य सत्ता के प्रश्रय से ही होता है, राज्य संरक्षण से ही धर्म- विशेष का प्रचार-प्रसार होता है। जैन धर्म सत्ता होन होने के कारण दिन-प्रतिदिन लुप्त होता चला गया । यही कारण है कि पावा में तत्कालीन स्तूप आदि किसी प्राचीन सामग्री के मिलने की सम्भावना कम है ।
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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इस टीले के अधूरे उत्खनन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रो० बाजपेयी ने लिखा है “ १९८५ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा उत्खनन करवाया गया था, वह अधूरा ही रहा । इस प्राचीन विस्तृत टीले का विधिवत् उत्खनन अवश्य करवाया जाना चाहिए तथा पड़रौना आस-पास के क्षेत्रों के पूर्णरूपेण सर्वेक्षण की नितान्त आवश्यकता है। स्वयं उन्होंने महानिर्देशक पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, भारत सरकार से अनुरोध किया है कि इस विषय में शीघ्र ही उचित कदम उठावें । आशा है कि वे लोग इस पर शीघ्र ही कार्यवाही करेंगे । ४ मेरी आरम्भ से मांग रही है कि उक्त टीले के उत्खन के साथ पूर्ण न्याय होना चाहिए तथा आस-पास के क्षेत्रों का सूक्ष्मता से अध्ययन, सर्वेक्षण और विश्लेषण हेतु उत्खनन शीघ्र ही होना चाहिए, जिससे कि सही पावा की पहचान हो सके ।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि पड़रौना प्राचीन नगर है । पड़रौना
१. महावीर का निर्वाण स्थल पावा कहाँ है ? प्राचीन पावा, पृ० १-२ । २. कनिंघम एंश्येण्ट ज्याग्रफी आव इण्डिया, पृ० ३७८-७९ ३. पाटिल, डी० आर०, एण्टीक्वेरियन रिमेन्स इन बिहार, पृ० ३३७ ४. लोकेशन ऑव पावा, युगयुगीन सरयूपारीण पावा, पृ० ५७
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