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________________ पावा-पड़रौना अनुशीलन : १२९ उपर्युक्त मूर्तियाँ एवं कलाकृतियाँ अपनी आत्मकथा स्वयं कहती हैं एवं प्रमाणित करती हैं कि यह क्षेत्र शैव, वैष्णव, जैन तथा बौद्धधर्म की संस्कृति एवं कला का मिश्रित केन्द्र रहा है । कला ही किसी क्षेत्र की सभ्यता, संस्कृति तथा वहाँ के नागरिकों की अभिरुचि का प्रतीक है। देश-विदेश के महत्त्वपूर्ण स्थानों पर प्राप्त पौराणिक एवं ऐतिहासिक मूर्तियों तथा प्रतिमाओं के विषय में विभिन्न प्रकार की किंवदन्तियाँ प्रचलित रही हैं । यह क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है । इस क्षेत्र में बिखरी हुई मूर्तियों के विषय में भी अनेक प्रकार की किंवदन्तियाँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी से चली आ रही हैं । यहाँ विभिन्न स्थानों पर कई ऐतिहासिक पाषाणकलाकृतियाँ एवं मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं, जिससे ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र का सदा से अपना अलग धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास रहा है । डॉ० शैलनाथ चतुर्वेदी, ' ( विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर ), महावीर सम्बन्धी जैन तीर्थस्थलियों तथा बौद्धधर्म सम्बन्धी तीर्थस्थलियों का तुलनात्मक अध्ययन कर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि 'यह निश्चित रूप से कहना कठिन है कि किस समय तीर्थंकर महावीर सम्बन्धी तीर्थस्थलियों की भौगोलिक स्थिति जैन मतावलम्बियों को विस्मृत हो गई जबकि बौद्ध धार्मिक महत्त्व के स्थानों के सम्बन्ध में यह बात नहीं कही जा सकती है । बौद्धों ने गौतम बुद्ध द्वारा निर्दिष्ट पवित्र स्थलों को उनके निर्वाण के कम से कम एक सहस्र वर्ष से अधिक तक न केवल स्मृति में रखा, अपितु तीर्थों के रूप में उनका पर्याप्त विकास भी किया । इस लम्बी अवधि में इन स्थानों पर स्तूप विहारादि का निर्माण होता रहा । बौद्ध तीर्थ स्थानों के विपरीत महावीर से सम्बद्ध स्थलों को यह सोभाग्य प्राप्त न हो सका। बुद्ध नये मत के प्रवर्तक थे । उन्होंने अपने भौतिक अवशेषों पर स्तूप निर्माण एवं सम्बन्धित स्थलों की तीर्थ-यात्रा का निर्देश अपने मत के प्रचार एवं प्रसार के लिए आवश्यक समझा। इसके विपरीत महावीर प्राचीन मत को आगे बढ़ा रहे थे । अतः किसी नई परम्परा की स्थापना की बात सम्भवतः उनके मन में नहीं उठी । यद्यपि यह कहना सम्भव नहीं है कि जैन धर्म में तीर्थ-यात्रा का महत्त्व कब से स्वीकृत हुआ, तथापि इसमें सन्देह नहीं कि यह परम्परा महावीर के कालोपरान्त १. महावीर का निर्वाण स्थल पावा कहाँ है ? प्राचीन पावा, पृ० १-२, गोरखपुर, १९७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
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