SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्शं विशाल कलात्मक प्रस्तर- प्रतिमा का निर्माण किया था । राजकीय संग्रहालय, लखनऊ में सुरक्षित पड़रौना से प्राप्त शुंगयुगीन लाल प्रस्तर की विशाल प्रतिमा का खण्डित युगलचरण सहित पीठासन पावा के नागरिकों की कला-कौशल एवं अभिरुचि का प्रतीक है । अतीत की गौरव गाथा कहता है, अजकलाप यक्ष का परिचय देता है तथा सशक्त प्रमाण प्रस्तुत करता है कि पड़रौना ही बुद्धकालीन पावा है । पड़रौना के उपनगर छावनी के निकट दक्षिण में, पड़रौना - कसया मार्ग के पश्चिम में काले प्रस्तर की कलाकृति का खण्डित अंश प्राप्त किया गया है । यह पद्मासन मुद्रा में स्थित महापुरुष की मूर्ति के चरण का अथवा हस्तका खण्डित भाग है । विद्वानों' के मतानुसार यह दसवीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य की कलाकृति है । पड़रौना से ३ मील पश्चिम-दक्षिण दिशा में लमुहा ग्राम स्थित है, यहाँ पर एक विशाल टीला रहा है । जनमानस में ऐसा विश्वास है कि कई वर्ष पहले यहाँ से प्राप्त मूर्तियाँ, दान्दोपुर ले जायी गयीं, जो लमुहा से ३ मील उत्तर-पश्चिम में है तथा पड़रौना से ५ मील पश्चिम में है । इन मूर्तियों के विषय में जब दान्दोपुर से सूचना प्राप्त करने की चेष्टा की गई, तो ज्ञात हुआ इस समय वहाँ कोई प्राचीन मूर्ति नहीं है । १९७२ में उपनगर छावनी के पश्चिम तालाब के पास खेत में काम करते समय गले की ताबीज, सिक्के व आभूषण प्राप्त हुए थे । उपनगर छावनी के पश्चिम स्थित, काँटी ग्राम में वटवृक्ष के नीचे लगभग १३ ' Fat नारी की प्रस्तर मूर्ति आज भी दृष्टिगोचर होती है । पड़रौना से दक्षिण, दक्षिणपूर्व दिशा में ७ किमी० की दूरी पर देवरिया जनपद में गांगरानी ग्राम स्थित है । वयोवृद्ध पुजारी श्री ज्वाला प्रसाद जी मिश्र का कथन है कि गांगरानी गाँव के पश्चिम दिशा में जमुई पोखरे के उत्तर में टीले के झुरमुट से लगभग १९१९ में जर्मनवासी कई मूर्तियाँ बैलगाड़ी पर लादकर पड़रौना ले आए, जिसकी ऊँचाई लगभग ४' या ४३ रही है । कुछ मूर्तियों पर प्रभामण्डल निर्मित था । निश्चय ही पड़रौना के समीपवर्ती क्षेत्रों में प्राचीन मूर्तियाँ व कलाकृतियाँ बिखरी हुई हैं । हमें जानकारी प्राप्त हुई है कि लगभग १८ वर्ष पहले महावीर की भव्य प्रतिमा के निकट से गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के किसी विद्यार्थी ने कुछ मूर्तियाँ ले जाकर गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर में रखवा दी थीं, जिसके विषय में कुछ ज्ञात नहीं हो पा रहा है । १. प्रो० कृष्णदेव एवं मधुसूदन ढाकी से वार्ता के आधार पर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002135
Book TitleMahavira Nirvan Bhumi Pava Ek Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwati Prasad Khetan
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy