________________
पावा-पड़रौना अनुशीलन : १२७ ई०पू० दूसरी शताब्दी की है, तो इसे गन्धार कला की नहीं होनी चाहिए। यदि यह गन्धार कला की है, तो इसे दूसरी शताब्दी की होनी चाहिए। यक्ष के चरण में धारीनुमा चप्पल न होकर मूंज का खड़ाऊ प्रतीत होता है। प्रतिमा की ऊँचाई लगभग १०' होनी चाहिए।" ___अब प्रश्न उठता है कि क्या यह विशाल यक्ष-प्रतिमा अज कपालक यक्ष की थी ? अजकपालिक चैत्य/चेतिय के विषय में बुकनन के १८१४ के सर्वेक्षण से सूचना प्राप्त होती है । बुकनन द्वारा पड़रौना के निकट प्राप्त तीन मतियों के रेखांकन के नीचे स्पष्ट उल्लिखित है कि "पडरौना के समीप, केलिया के प्राचीन मन्दिर के भग्नावशेष की प्रतिमा है। ऐसा प्रतीत होता है कि "उदान" में वर्णित जिस चेतिय को अजकपालक चेतिय सम्बोधित किया गया है, वह बुकनन द्वारा लिखित 'केलिया चेतिय' का अपभ्रंश है। यह साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक साक्ष्य पड़रौना को पावा की मान्यता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण कड़ी है। प्राचीन टीले के निकटवर्ती ग्राम के नामकरण का सूक्ष्मता से अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि इसके निकट ( धूस के समीप ) पलिया नामक ग्राम है। पलिया ग्राम के नामकरण से अजकलापक के अपभ्रंश का बोध होता है। बौद्ध साहित्य में पावा के साथ-साथ अजकलापक चैत्य का वर्णन बार-बार आता है। भारहुत साची में अजकालक यक्ष का नाम आता है। इसकी अधिक सम्भावना है कि अजकलापक से अजकलपीय तथा अजकपालिय से अजक लुप्त हो गया हो, पालिय शेष बचा हो, जो कालान्तर में “पलिया" में परिवर्तित हो गया हो, एवं यही अजकलापक अथवा अजकपालीय चैत्य रहा हो। जब तक, "अजकपालक", "अजकपालीय", "पालीय" एवं “पलिया" तथा "चैत्य", "चेतिय", "केलिय" एवं “केलिया" के नामकरण का कोई भाषावैज्ञानिक अनुसन्धान कर परिवर्तित शब्दों की विशद व्याख्या नहीं करता है, तब तक यह अपने आप में गूढ़ मनोरंजक रहस्य बना रहेगा।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट ज्ञात होता है कि अजकालक या अजकलाप नामक यक्ष पावा के अजकलापक या अजकपालिय चैत्य में रहा करता था, जिसके प्रति श्रद्धा एवं महत्ता के कारण ही पावा के नागरिकों ने इसकी
१. माण्टगोमरी मार्टिन, एम० आर० हि०ए०टोस्टे०ई० इ०, वाल्यूम ११,
१० २८२-२८३, (इमेज ऑफ रूइन्स ऐट केलिया ओल्ड टेम्पुल नियर पड़रौना )।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org