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१२६ : महावीर निर्वाणभूमि पावा : एक विमर्श
as generally found in Gandharva art,
speckled Red Stone i.e. 2nd B.C. विशाल खण्डित युगल-चरण सहित पीठासन का विवरण निम्नलिखित है : (चित्र सं०८)
९५ से०मी० नींव के पत्थर की लम्बाई ३३ से०मी० नींव के पत्थर का व्यास ३३ से०मी० आधार के ऊपर की लम्बाई ५१.५ x १४ से०मी० आधार की चौड़ाई ६३ x १४ से०मी० आधार की लम्बाई ४० सेमो०
चरण की लम्बाई १३.१७ सेमो० चरण की चौड़ाई १९.८ से०मी०
दो चरणों के बीच की दूरी १३ से०मी० एड़ी की गोलाई १४ से०मी० पादुका की गोलाई
उपर्युक्त वर्णन से सहज ही कल्पना की जा सकती है कि जिस मूर्ति के युगल चरण-पीठासन पर निर्मित हैं, उस मूर्ति की ऊँचाई कम से कम १०' होनी चाहिए । यक्ष के चरण की धारीनुमा पादुका गान्धारकला की प्रतीक है। मूर्ति का अन्य भाग उस तालाब में नीचे या सड़क के दूसरी ओर धरातल में दबा होना चाहिए ।
आर० सी० गौड के पत्र से ज्ञात होता है कि वे उत्तर प्रदेशीय पुरातत्त्व संगठन की ओर से सन् १९५५ में यक्ष प्रतिमा के अवशेष के निरीक्षण हेतु पड़रौना आये थे। उनके कथनानुसार यक्ष प्रतिमा का भाग प्राप्त स्थान पर ही नष्ट किया जा चुका था। जब उन्होंने, यक्ष प्रतिमा के पीठासन के शेष भागों को खोजने का प्रयास किया तथा स्थली का उत्खनन करवाया तो उन्हें लाल बलुए प्रस्तर के कत्तल के ढेर मिले थे तथा साथ ही पीठासन सहित चरण के कुछ अंश प्राप्त हए थे, जो एक विशाल यक्ष प्रतिमा के अंश मात्र थे। सम्भवतः यह प्रतिमा ई० पूर्व० द्वितीय या तृतीय सदी की है। पड़रौना में किसी ने यक्ष प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया होगा।''
इसके विषय में प्रो० मधुसूदन ढाकी का कथन है “यदि यह प्रतिमा १. आर० सी० गोड के पत्र दिनांक १५ जनवरी १९८८ के आधार पर । २. ब्यक्तिगत वार्ता के आधार पर ।
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